Friday, November 2, 2018

इर्दगिर्द


मैं तुम्हारे इर्दगिर्द


इसलिए रहता हूँ


क्यूंकि तुझमें मुझे


प्रकृति के ही दर्शन


होते हैं और ये लोग


न जाने क्या क्या यूंही


सोचने लगते हैं ! 




मैं तुम्हारे इर्दगिर्द


इसलिए रहता हूँ


क्यूंकि तुम कभी


इतना मुझे डांटती हो


माँ याद आ जाती है ! 




मैं तुम्हारे इर्दगिर्द


इसलिए रहता हूँ


क्यूंकि मैं जब भी


कुछ नया करूँ तो


तुम्हारा हस्तक्षेप हो !




मैं तुम्हारे इर्दगिर्द


इसलिए रहता हूँ


तुम कौन हो ये मुझे


नहीं पता, न सोचूँ मैं


तुम न हो तो मैं नहीं !


*


पंकज त्रिवेदी


28 अक्टूबर 2018

2 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना.. मन के सुंदर भाव का तरल प्रवाह है सर।

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  2. वाह !!!!!!! प्रेम के रूपों को कोई आपसे ज्यादा परिभाषित कहाँ कर पाता है आदरणीय पंकज जी ??अनुपम प्रेम काव्य !!!!!!!

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