मैं तुम्हारे इर्दगिर्द
इसलिए रहता हूँ
क्यूंकि तुझमें मुझे
प्रकृति के ही दर्शन
होते हैं और ये लोग
न जाने क्या क्या यूंही
सोचने लगते हैं !
मैं तुम्हारे इर्दगिर्द
इसलिए रहता हूँ
क्यूंकि तुम कभी
इतना मुझे डांटती हो
माँ याद आ जाती है !
मैं तुम्हारे इर्दगिर्द
इसलिए रहता हूँ
क्यूंकि मैं जब भी
कुछ नया करूँ तो
तुम्हारा हस्तक्षेप हो !
मैं तुम्हारे इर्दगिर्द
इसलिए रहता हूँ
तुम कौन हो ये मुझे
नहीं पता, न सोचूँ मैं
तुम न हो तो मैं नहीं !
*
पंकज त्रिवेदी
28 अक्टूबर 2018
बहुत सुंदर रचना.. मन के सुंदर भाव का तरल प्रवाह है सर।
ReplyDeleteवाह !!!!!!! प्रेम के रूपों को कोई आपसे ज्यादा परिभाषित कहाँ कर पाता है आदरणीय पंकज जी ??अनुपम प्रेम काव्य !!!!!!!
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