Monday, December 31, 2018

जुर्रत ख्व़ाब देखने की : रश्मि बजाज


जुर्रत ख्व़ाब देखने की : रश्मि बजाज
पंकज त्रिवेदी

अपनी कविताओं में निर्भीक संवाद करने वाली सुप्रसिद्ध कवयित्री रश्मि बजाज समाज की नब्ज़ पकड़कर लिखती हैं। यूं तो रश्मि जी द्विभाषी (हिन्दी, अंग्रेज़ी) साहित्यकर्मी है। इससे पूर्व उनके चार काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। महाविद्यालय में अंग्रेज़ी विभागाध्यक्ष, संयुक्त हिन्दी सलाहकार समिति (भारत सरकार) की सदस्या होने के कारण दोनों भाषाओं के साहित्य पर उनका अभ्यास रहा है और भाषाओं पर उनकी पकड़ रही है। अनगिनत पुरस्कारों से विभूषित रश्मि बजाज बहुत ही सजग एवं सामाजिक उत्तरदायित्व को साहित्य के माध्यम से बड़ी स्पष्ट बात कह देती हैं।

उनके इस काव्य संकलन में समाहित कविताओं में ऐसी घटनाओं का ज़िक्र मिलेगा जो हमें अंदर तक झकझोर के रख देगा। उन्हों ने ही अपनी बात लिखते हुए शीर्षक दिया है – ‘नहीं मरते ख्व़ाब... ।’ 2013 में ‘स्वयंसिद्धा’ काव्य संकलन प्रकाशित होने के बाद अन्त: एवं बाह्य जगत में जो कुछ होता रहा, गुज़रता रहा वो उनके हृदय की संवेदना को जगाता हुआ आक्रोश भरता गया। कहीं भ्रूण संहारित बेटियाँ, माँ-बाप की ज़बरजस्ती, शोहदों की गुण्डागर्दी के कारण स्कूल छोड़ने पर मजबूर लड़कियों की हृदयभेदी गुहार और न जाने पीड़ादायक अनगिनत घटनाओं में छुपे अन्याय की गूँज कवयित्री के कानों में गूंजती रही। ‘कोई उन्मादी लिखता कविता...’ इस वाक्य एक ही वाक्य को उन्हों ने पूरे पन्ने पर उकेरा है, यही महत्त्व दर्शाता है। उनकी पहली ही कविता ‘उन्मादी’ इस काव्य संकलन की गंगोत्री है –

नींद उड़ा देने वाले
इस विस्फोटक
विकराल समय में
ख्व़ाब देखना –
है एक जुर्रत
एक बग़ावत
एक अजूबा  

कोई उन्मादी
लिखता कविता...
*
देश-दुनिया की वर्त्तमान परिस्थिति, बदलते संयोग, सामजिक असमानता, नारी उपेक्षा एवं उत्पपीड़न आदि विषयों पर रश्मि जी की संवेदना मुखरित होती है और दूसरों की पीड़ा को वो भोगती हैं। यहीं से उन्मादी कवयित्री एक क्रांतिकारी विचार की मशाल लेकर सत्ता और समझदारों को जगाने के लिए लिखती हैं। रश्मि जी की एक-एक कविताओं में सच्चाई, जोश और होश हमें महसूस होता है। ‘अवतार’ शीर्षक की कविता में से दो अंश –

खेतों में जब
उगें बंदूकें,
मेढ़ों पर जब
ढुलकें लाशें,
छल-छल गगरी से
बह निकले जब
रक्त की धार
*
अंधकार का
पटल चीर तब
कवि, तू ले
विराट अवतार !
*
साहित्य सिर्फ स्वयंसिद्धि नहीं है, जिस दुनिया में हम जी रहे हैं उसे अगर हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम:’ की व्याख्या देते हैं तब साहित्यकार में एक सम्पूर्ण जनहिताय वैचारिक शक्ति के दर्शन होने चाहिए। कहीं आतंक, लूट, जातिवाद, राजनीति, अनैतिकता, अराजकता, संवेदनहीन समाज को देखकर ईश्वर खुद मानव अवतार धारण कर पृथ्वी पर अवतरित होता है, ऐसे ही कवि को भी विराट अवतार लेकर मानसिक विकृतियों के खिलाफ आवाज़ उठानी ही होगी। रश्मि जी ने ‘कवि और साधक’ कविता में दोनों को एक पंक्ति में बिठा दिया है। कविता महज़ आवेश, कल्पना और संवेदना का सम्पूट नहीं हैं। कविता तो साधना है। जो ब्रह्माजी की तरह ऐसी सृष्टि रचता है जहाँ उच्च विचारों से जीवों की बौद्धिकता, संयम एवं सत्वशील हों –

बैठ समाधि
त्रिकालज्ञ
अन्तर्भेदी
साधक और कवि
खोज लाते हैं
नए ब्रह्माण्ड
विरच डालते हैं
नव सृष्टि !        
*
कवयित्री पर बुद्ध एवं सूफ़ीयाना असर स्पष्ट नज़र आता है, वो लिखती हैं -  

ज़िंदा है तो
सिर्फ यही –
दरवेश और सूफ़ी,
तलाशते, तराशते
समेटे, संजोए
सब संभावनाएँ
इन्सान के
इंसान बने रहने की !
*
कुछ व्यक्ति विशेष कविताएँ हैं ‘रहेंगे जिंदा...’ विभाग शीर्षक के अंतर्गत। जिसमें अमृता प्रीतम, बाबा अम्बेडकर, अब्दुल कलाम की अहमियत उजागर की गई है। ‘ये वक्त न तेरे थमने का...’ विभाग शीर्षक अंतर्गत जोशभरी कविताएँ हैं। जिसमें फ़ैसला, जिहाद और सहस्त्रनेत्रिणी कविताएँ हमें सोचने पर मजबूर कर देती है। एक कविता है जो ख़ास वातावरण को चित्रात्मक रूप में हमारे समक्ष रखी गयी है।  जे.एन.यू. – गंगा ढाबे के प्रांगण में एक सांझ उतरी कविता, जिसका शीर्षक है – गंगा ढाबा और गंगातट । जिसमें जे.एन.यू. की संस्कृति, संवाद और सोच स्पष्ट होती है।  

जे.एन.यू. का
गंगाढाबा
ऋषिकेश का
वो गंगा-तट
दोनों मुझमें
एक वक्त हैं,
एक साथ ही ज़िंदा
*
आक्रोश, क्रांतिकारी, व्यक्ति विशेष, वारदात, त्यौहार और ‘मैं हूँ स्त्री...’ विभाग शीर्षक अंतर्गत स्त्री केन्द्रित कविताएँ मिलती हैं। जिसमें स्त्रियों के अन्याय के साथ ‘पुत्री जनक की’ विशेष रचना है। आत्मविश्वास से भरी हुई कवयित्री रश्मि बजाज अपनेआप में प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी हैं। अपनी बात, अपने विचार को मजबूती से रख सकती हैं। यही दर्शाता है कि आज की स्त्रियाँ कितनी विचारशील एवं सक्षम होने लगी हैं। रश्मि बजाज जी को पांचवे काव्य संकलन के लिए ढेरों बधाईयाँ।

* * *
विभागाध्यक्ष, अंग्रेज़ी विभाग,
वैश्य पी.जी. कॉलेज, भिवानी – 127021 (हरियाणा)




      

Sunday, December 30, 2018

‘ईंगुरी सूरज’ : श्रद्धा ‘सुमन’ की न केवल कविताएँ, कलाकृति भी ! - पंकज त्रिवेदी

कविताएँ कहने से नहीं लिखी जाती। जिनके हाथ में तुलिका हो, उनकी कल्पना का आकार अपने आप बनते जाता है। मित्र श्रद्धा ‘सुमन’ ने अपनी पद्य रचनाओं की किताब – ‘ईंगुरी सूरज’ में जो कुछ भी संजोया है वो सिर्फ कविताएँ नहीं है बल्कि उनके मस्तिष्क में आते वो सारे विचार चित्र है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ उन्हों ने तुलिका के स्थान पर कलम के माध्यम का उपयोग किया है।

विचार और कल्पना का मिलाझुला रूप ही सृजनात्मक दृष्टि देता है और यही हुआ श्रद्धा जी की कविताओं में, तल्खियों में और क्षणिकाओ में... जो एक पल के लिए आपको अपनी ओर खींच लेता है।
एक क्षणिका –

स्व अति सूक्ष्म है।
कैसा फिर विस्तार,
दो पग में इसे माप ले,
खुद को कर साकार।

निजत्व ही ‘स्व’ है और स्वकेंद्री भी है। इसलिए छोटा सा शब्द होते हुए उसका विस्तार कैसे यह बात कहकर पाठक को सजग बना दिया है। बाद में कहा कि दो पग में इसे माप ले, खुद को कर साकार... यही महत्त्वपूर्ण है। स्व-केंद्री बनकर भी आपको अपने अंदर ही विक्सित होना है और ‘स्व’ से ‘सर्व’ की यह यात्रा की ओर निर्देश किया है।

कैसे बनाऊँ एक कविता?
शब्दों को पिरोऊँ तो बिखरती है कविता
आँखों को भर लूं तो सिसकती है कविता

कविता महज़ शब्दों की अभिव्यक्ति नहीं है। जिस पल को महसूस करते हुए हम कुछ लिख दें वो कविता है। अर्थ यही कि जीवन का छोटा सा अंश ही कविता बनकर उभरता है। कविता बन भी सकती है और छल भी सकती है।

तल्खियाँ प्रभावित करती हैं।
चौबीस घंटे में मेरा कवित्व
कुछ ही क्षण मेरे पास आता है।
अब कहो
उसे सुनूँ या लिखूं?

सृजन के पल ही होते हैं जो हमारे अस्तित्व को भूलाकर कहीं नए रूप – रंग में ढाल देता है। नए विषय, विस्तार और कल्पना में ले जाता है जहाँ हम हमारे ही वश में नहीं रहते। शायद यही तो प्रकृति से परम का अनुभव हमें महसूस कराती है। ऐसे में हम उसे सुनें या लिखें?

सामाजिक विसंगति और अनुभवों से गुज़रती ये तल्खी –
इस मंदी में खरीदनी है
दो गज जमीनश्मशान में
डर है, कहीं वहाँ भी इमारतें न बन जाय ।

भौतिकता और आबादी के विस्तार के कारण इमारतों का जंगल उभरने लगा है और प्रकृति का विनाश होने लगा है। जंगल कट रहे हैं, खेत उजड़ने लगे हैं ऐसे में कवियत्री की दृष्टि और चिंता अंतिम विश्रामघाट की ओर खींच लेते है हमें भी... मार्मिक रचना है यह ! श्रद्धा रावल ‘सुमन’ को मेरी अनगिनत शुभकामनाएं ।
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संपर्क : राघव रावल, 404, राधेकृष्ण एपार्टमेन्ट, वॉकहार्ट हॉस्पिटल के सामने, कालावाड़ रोड, राजकोट - गुजरात 


 

Saturday, December 29, 2018

29 दिसंबर 2018 : अखंड राष्ट्र (दैनिक) मोदी से टूटता जनता का विश्वास

29 दिसंबर 2018 : अखंड राष्ट्र (दैनिक)
लखनऊ और मुंबई -मेरा स्तम्भ - प्रत्यंचा
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प्रत्यंचा मोदी से टूटता जनता का विश्वास - पंकज त्रिवेदी
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2014 से नरेन्द्र मोदी जी के नाम इश्के मिजाजी का नशा इस देश के प्रत्येक नागरिक को चढ़ गया था मगर उसमें कहीं भी इश्के हकीकी नज़र नहीं आती थी । मतलब मोदीजी के लिए प्यार नहीं, आकर्षण मात्र था । पढ़े लिखें हो या अनपढ़, किसी भी जात-धर्म से हों, सरकारी या प्राइवेट नौकरी हों, कामगार या उद्योगपति हों, सबके मन में यही था कि भारतवर्ष को दुनिया में अव्वल नंबर पर प्रतिष्ठा और वर्चस्व एक ही आदमी स्थापित कर सकता है, जिनका नाम है नरेन्द्र मोदी। इसी भरोसे पे देश की जनता ने खुले मन से और पूर्ण समर्पण से भाजपा को बहुमत दिया और वो सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी के नाम । एक समय था कि भाजपा पर कोई विश्वास नहीं करता था मगर अटल बिहारी वाजपेयी जी की व्यक्तिगत प्रतिभा के कारण इस देश की जनता ने भाजपा को सर्व सत्ताधीश बनाने का सपना देखा था। दुर्भाग्य यह रहा कि वाजपेयी जी की अगुवाई में सरकार चल न पाई और कांग्रेस कई वर्षों तक सत्ता में रही।

देश में किसी एक व्यक्ति के नाम पर ही चुनाव जीता जाएं और सत्ता हांसिल हो ऐसा सिर्फ तीन बार हुआ। स्वर्गीय इंदिराजी को अपने ही सुरक्षाकर्मीओं ने गोली मारी तब उनके नाम और परिवार के प्रति संवेदना जताते हुए इस देश की जनता ने स्वर्गीय राजीव गांधी जी को प्रधानमंत्री पद दिया। दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी जी अपने निराले स्वभाव, कवित्व, बिना राग-द्वेष के प्रतिस्पर्धी थे। जनता ने उनमें एक संवेदनशील व्यक्ति को देखा और वो प्रधानमंत्री बन गए । उनके बाद नरेन्द्र मोदी ने गुजरात मॉडल और हिंदुत्व के नाम से लोगों के मन में ऐसे हिंदुस्तान का सपना दिखाया जो दुनिया में अव्वल नंबर पर हों और देश में प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ख़ुशहाली लाएं ।

जब देश में वो लोग थे जो कांग्रेस के अलावा सोच भी नहीं सकते थे वो भी मोदी जी के इश्क में पागल होकर नाच रहे थे । लोगों मन में यही विश्वास था कि विकास के नाम मोदी जी देश की सकल बदल देंगे । शुरुआत भी शानदार रही । लोगों के मन की बात कहते मोदी जी धीरेधीरे अपने मन की बात कहते विनम्रता खोने लगे । भाषा का संयम टूटा, निर्धारित वचनों से हटकर कुछ ऐसे निर्णय करने लगें जिसके लिए जनता ने सोचा तक नहीं था। कांग्रेस के भ्रष्टाचारी दीमक का ख़िताब अब भाजपा ने छीन लिया । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी छवि बनाने में मोदी जी जरुर सफल रहें मगर देश की अंदरुनी जागृति, विकास और ख़ुशहाली का सपना चकनाचूर होने लगा। उनके निर्णय में सत्ता से सरमुखात्यार मोदी जी की छवि उभरने लगी।

मोदी जी के लिए कहा जाता है कि देश के किसी भी कोने में जाएं, जिसे भी मिलें, उन्हें वो कभी नहीं भूलते । अपने मन में जिस कार्य के लिए वो ठान लेते हैं उसे पूर्ण करते हैं क्यूंकि वो जिद्दी है । जिद्द सकारात्मक हों तो भला करें अन्यथा नुकसान तो करेगी ही । मोदी जी के पास जिद्द और सत्ता प्राप्त करने का झूनून था इसलिए सफ़ल हो गए । 2014 में सत्ता में आते ही प्रथम पांच वर्ष के शासन में क्या करना है उसकी ब्लूप्रिंट उनके दिमाग में थी । जनहिताय कार्यों से ज्यादा विरोधीयों को कैसे पस्त करना और उसके लिए पांच वर्ष में कौन से समय पे कौन सा कार्य करके विरोधियों को बीच बीच में ज़ख़्मी करते रहना, यह एक बहुत बड़ी सोच (साज़िश) थी । उसी के आयोजन का एक हिस्सा देश के धनपतियों को झुकाना, सेलिब्रिटी को अपने गुणगान के लिए शामिल करना प्रमुख था । क्यूंकि देश धनपतियों पर देश की आर्थिक स्थिरता और सेलिब्रीटी से भोली जनता छलकर प्रभावित करना था । छोटे उद्योग, किसान, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि क्षेत्रों में दम न था कि वो अपने या देश के बारे में सोचें या कुछ कर पाएं । ऐसे में मोदी जी ने अपने भाषण में गुजराती लहजे से जनता को मनोरंजन के साथ विरोधियों की बुराई सास-ननंद के लुभावने अंदाज़ में शुरू कर दी । इन सब के बीच में ‘विकास’ पीछे छूटता गया, जातिवाद, मोब लिंचिंग, की-पोस्ट पर संघ के सदस्यों को बिठाकर एक जाल बून लिया । मोदी जी सिर्फ विलक्षण नहीं, विचक्षण (चालाक) भी हैं ।

पांच वर्ष में विरोधियों पर प्रहार करने में एक आयोजन का परिणाम आज चर्चा में है, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल पर आधारित ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ फिल्म । फिल्म की कहानी संजय बारू की इसी नाम से लिखी गई किताब पर आधारित है । इस पर मनमोहन सिंह का किरदार निभानेवाले अभिनेता अनुपम खेर का बयान था, उनके नेता पर फिल्म बनी है उन्हें (कांग्रेस) खुश होना चाहिए । अनुपम उन सेलिब्रीटी में हैं जो भाजपा के समर्थक है । राष्ट्रपिता गांधीजी, सरदार और अन्य कई महानुभावों के जीवन पर फ़िल्में बनी हैं । लेखक संजय बारू वर्ष 2004 से 2008 के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार थे । फिल्म के विरोध के बाद टीवी पर अनुपम खेर ने बताया कि 2014 में फिल्म पर कार्य शुरू हुआ और अब रिलीज़ हो रही है । सेंसरबोर्ड ने मंज़ूरी नहीं दी तबतक प्रोमो भी नहीं दिखाया । मतलब कि 2019 के चुनाव के मद्देनज़र इस फिल्म की प्लानिंग की थी । अपनी नई किताब ‘द बोम्बे प्लान’ की पब्लिसिटी के समय फिल्म के बारे में संजय बारू ने पत्रकारों को कोई उत्तर न दिया मगर उनकी खुशी चेहरे पर छलकती थी, जो कांग्रेस से गद्दारी करके उन्होंने अर्जित की है ।
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Saturday, December 22, 2018

22 दिसंबर 2018 : अखंड राष्ट्र (दैनिक) प्रत्यंचा - विदेशमंत्री सुषमा स्वराज की अलग पहचान

22 दिसंबर 2018 : अखंड राष्ट्र (दैनिक)
लखनऊ और मुंबई -मेरा स्तम्भ - प्रत्यंचा
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विदेशमंत्री सुषमा स्वराज की अलग पहचान
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सुषमा स्वराज भाजपा की समर्पित एवं मंजी हुई राजनीतिज्ञ है। जब से केन्द्र में भाजपा की सरकार आई है तब से पुराने भाजपाई नेताओं को दरकिनार करने में कोई कसर नहीं छोडी गई। इन सभी की लम्बी सूची में सुषमा स्वराज को विदेश मंत्रालय की ज़िम्मेदारी देने पडी इसके पीछे भी बहुत सारी सच्चाई छीपी है। इस भारत देश को एक सुषमा जी के रूप में न केवल विदेशमंत्री मिली बल्कि एक सहृदयी और ममतामयी मातृशक्ति का भी दर्शन हुआ है। 

2014 में सरकार बनने के बाद विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज ने ईराक में बंदी हुए भारतीयों को सुरक्षित होने के समाचार के साथ भारतीयों को आश्वासन दिया था। इराक में सुन्नी आतंकवादियों द्वारा बंधक बनाए गए 39 भारतीय कामगार सुरक्षित हैं और उन्हें भोजन-पानी मुहैया कराया जा रहा है, यह जानकारी जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दी थी तब से देश की जनता को लगा था कि अब देश में नई सरकार आई है तो बहुत कुछ देश की भलाई के लिए होगा। फिर भी उन बंदीयों को छुड़वाने में जो समय लगता था उसके लिए सुषमा जी ओ संसद एवं पत्रकारों के सवालों का सामना करना पडा था। तब उन्हों ने सवाल करते हुए कहा था कि 'गोपनीयता पहला सिद्धांत है. फिर मैं कार्य योजना का खुलासा कैसे कर दूं?' बाद में 4000 भारतीय नागरिकों को भारत लौटने में सहायता मुहैया कराई गई थी।

सुषमा स्वराज ने केरल के कांग्रेसी सांसद के. सी. वेणुगोपाल द्वारा लाए गए प्रस्ताव का उत्तर भी दिया था। कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह, आम आदमी पार्टी के धरमवीर गांधी ने इराक में भारतीय नागरिकों की हालत के बारे में पूछा था तो संतोषकारक प्रत्युत्तर देते हुए उन पर भरोसा रखने को कहा था। उसके बाद केन्या से 3 भारतीय, 7 नेपाली लड़कियों को छुड़वाने के लिए सुषमा जी ने खूब मेहनत से सफलता प्राप्त की थी।  इन लड़कियों को केन्या की राजधानी मोम्बासा में कैद रखा गया था। इन भारतीय लड़कियों के साथ 7 नेपाली लड़कियों को भी छुड़वाकर वापस लाई गई थी। जांच एजेंसियों को शक था कि ये 10 लड़कियां मानव तस्करों के अंतर्राष्ट्रीय गिरोह का शिकार हो गई थीं।

सुषमा स्वराज व्यक्तिगत रूप से बहुत ही विद्वान एवं आदर्श महिला है। यह उनकी भाषा, संस्कार एवं बाह्य व्यक्तित्त्व में भी झलकता है। उन्हों ने विदेशमंत्री पद से विदेशों के साथ भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए और व्यक्तिगत प्रभावशाली छवि भी बनाई। सुषमा जी सितंबर 2018 में यूएन महासभा में पाकिस्तान पर जमकर बरसीं थीं वो भाषण सभी को याद होगा और प्रत्येक भारतीय को उन पर गर्व होगा। सुषमा स्वराज जी ने अमरीका के न्यूयॉर्क शहर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें सत्र को संबोधित किया तब अपने संबोधन की शुरुआत में सुषमा स्वराज ने इंडोनेशिया में आए भूकंप में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी थी। यही दर्शाता है कि उनके मन में मानवीय जीवन का कितना मूल्य है और कितनी संवेदना है।

उन्होंने अपने भाषण में पाकिस्तान के आतंकी हमलों और साजिशों को पर्दाफ़ाश करते हुए दोटूक भाषण दिया था, जिसे सुनकर पूरा विश्व स्तब्ध हो गया था। चारों ओर सुषमा जी के भाषण से भारत के प्रति दुनिया के देश देखने लगें और पाकिस्तान को दुत्कारने लगे थे। यह जोश और कमाल सुषमा जी का था, जिन्हों ने प्रत्येक मुद्दे पर सटीक, संक्षिप्त और संयमित भाषा में दुनिया को सबकुछ समझा दिया था। उन्होंने कहा था, ''हम उस बुराई से कैसे लड़ेंगे जिसकी संयुक्त राष्ट्र अब तक परिभाषा तय नहीं कर पाया है।” 

हाल ही में छह साल बाद मुंबई के हामिद निहाल अंसारी की पाकिस्तान से भारत वापसी हुई है। साल 2012 में फ़ेसबुक पर बनी एक दोस्त से मिलने के लिए हामिद पाकिस्तान गए थे। जहां पाकिस्तान के कोहाट में जासूसी और बिना दस्तावेज़ के आरोप में हामिद को गिरफ्तार कर लिया गया था।  हामिद अपने परिवार के सदस्यों के साथ बुधवार को विदेश मंत्री से मिलने उनके कार्यालय पहुंचे थे। इस दौरान हामिद और उनकी मां भावुक हो गए तब विदेश मंत्री ने उन्हें हिम्मत बंधाई थी।

सुषमा स्वराज से बात करते समय हामिद रोते नज़र आए। इसके बाद सुषमा ने कंधा थपथपाकर हामिद को दिलासा दिया। हामिद की मां फ़ौज़िया अंसारी भी अपनी भावनाओं पर क़ाबू नहीं रख पाईं। उन्होंने रुंधे हुए गले से कहा, "मेरा भारत महान, मेरी मैडम महान, सब मैडम ने ही किया है।"

सुषमा स्वराज सिर्फ भाजपा की नेता नहीं है, वो भारतीय नेता है। उनमें देश और नागरिकों के प्रति अपार स्नेह और सम्मान हम भी महसूस कर सकते हैं। सुषमा जी के कद का एक भी नेता वर्त्तमान सरकार में नज़र नहीं आता। अफसोस इस बात का है कि इस देश में लोग हनुमान जी को आदिवासी, मुस्लिम, जाट और जैन तक कहने लगे हैं। इतनी गिरी हुई राजनीति में से अब सुषमा जी ने घोषणा कर दी है कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगी। जब से मोदी जी ने विदेश मंत्रालय की ज़िम्मेदारी खुद हड़प ली है तो हो सकता है वाजपायी जी और आडवाणी जी के बाद सुषमा जी भी वर्त्तमान सरकार में अपना सम्मान और स्थान खो रही हैं। यही आभास उन्हें हो गया है और लगता है उनकी राजनीतिक यात्रा ज्यादा लम्बी नहीं होगी।  

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Monday, December 17, 2018

15 दिसंबर 2018 : अखंड राष्ट्र (दैनिक) लखनऊ और मुंबई - मेरा स्तम्भ - प्रत्यंचा * हम किसीको देश से मुक्त करना नहीं चाहेंगे, लड़कर जीतेंगे - पंकज त्रिवेदी


15 दिसंबर 2018 : अखंड राष्ट्र (दैनिक) लखनऊ और मुंबई -
मेरा स्तम्भ - प्रत्यंचा
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हम किसीको देश से मुक्त करना नहीं चाहेंगे, लड़कर जीतेंगे
- पंकज त्रिवेदी
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चीन के राजा ने एक बार लाओत्से को अपने दरबार में बुलाया। राजा ने उनसे अपने राज्य का मुख्य न्यायाधीश बनने का अनुरोध किया। राजा का मानना था कि बुद्धिमान व्यक्ति न्यायाधीश बन जाए, तो उसका राज्य पूरे देश में एक आदर्श राज्य बन जाएगा। हालांकि, पहली बार अनुरोध पर लाओत्से ने मुख्य न्यायाधीश बनने से इंकार कर दिया। राजा बात पर अड़ा रहा। राजा की जिद्द पर लाओत्से ने कहा कि "अगर वह राज्य के मुख्य न्यायाधीश बनते हैं, तो या तो वह न्यायाधीश बने रहेंगे या फिर राज्य की कानून व्यवस्था बनी रहेगी। इन दो चीजों के अलावा और कुछ भी संभव नहीं है।" बावजूद इसके लाओत्से न्यायाधीश बना दिए गए।

पहले ही दिन एक चोरी का मामला उनके समक्ष आया। असल में एक चोर ने राज्य के सबसे धनी आदमी के घर पर चोरी कर उसकी संपत्ति का लगभग आधा धन चुरा लिया था। लाओत्से ने बड़े गौर से दोनों पक्षों को सुना और फिर अपना फैसला सुनाया। फैसले में लाओत्से ने कहा कि चोर और इस धनी व्यक्ति दोनों को 6-6 माह की जेल की सजा दी जाए। इस फैसले को सुनते ही अमीर आदमी चौंक गया। उससे ज्यादा हतप्रभ तो राज्य का राजा था, जो लाओत्से को न्यायाधीश बनाने पर तुला था। अमीर आदमी ने फैसले पर सवाल उठाते हुए लाओत्से से कहा कि "आखिर आप कहना क्या चाहते हो? चोरी मेरे घर हुई है। धन मेरा चुराया गया है और चोर आपके सामने खड़ा है। फिर मैं दोषी, यह कैसा न्याय है?"

लाओत्से ने कहा कि "मुझे लगता है कि मैंने अभी भी चोर के प्रति अन्याय ही किया है। तुम इस चोरी के सबसे बड़े जिम्मेदार हो। तुम्हें चोर से ज्यादा सजा देनी चाहिए। तुमने जरूरत से ज्यादा धन का संचय कर समाज के एक बड़े तबके को संपत्ति से वंचित कर दिया है। तुम धन संचय करने की लालसा में सने हुए हो। तुम्हारे अंदर के लालच ने इस देश में चोरों को प्रोत्साहन दिया है। तुम इस चोर से ज्यादा बड़े गुनहगार हो।"

कांग्रेस अगर चोर (भ्रष्टाचारी) है तो बीजेपी वो धनी है जिसने जरुरत से ज्यादा धन, अहंकार, धर्म की राजनीति, माध्यम-पिछड़ों का अवमूल्यन, अविवेकी भाषा का संचय किया है। जनता ने कांग्रेस को ये सजा दी की पूर्ण बहुमत की जरुरी सीटों से रोक रखा। जब कि भाजपा को अपने कर्मों की सजा दी। इस जीत से कांग्रेस को खुश होने की जरुरत नहीं है। मनोबल बढ़ा है उसीसे 2019 के चुनाव में पूर्ण बहुमत लाना होगा। डायन जब घर देख जाती है तो तांत्रिकों के पसीने छूट जाते हैं, कांग्रेस को ये भूलना नहीं चाहिए। बीजेपी कभी भी पलटवार कर सकती है। कांग्रेस जीत में उनकी मेहनत से ज्यादा बीजेपी की मक्कारीने जिताया है। राहुल जी ने साबित कर दिया कि ‘रॉयल’ कौन होते हैं। संस्कार और भाषा में मोदी को देश के अंतिम व्यक्ति की सीट पर बिठा दिया।

शिवराज ने कहा कि हमें चौकीदारी करना आता है, बैठेंगे नहीं। बहुमत नहीं है तो दावा भी नहीं करेंगे। अब इस विधान को समझें तो बीजेपी की मंशा स्पष्ट हो जाती है। शीतकालीन सत्र में या आगे बीजेपी राममंदिर बनाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति के लिए रखेंगी। अगर कांग्रेस ने विरोध किया तो लोकसभा चुनाव के लिए यह विरोध कांग्रेस के लिए भारी पड़ेगा। बीजेपी को सिर्फ इतना कहना होगा कि हमने प्रस्ताव रखा मगर हिन्दू विरोधी कांग्रेस ने रोड़ा डाला। इससे छोटी सोच और दुविधा में रहने वाले वोटर्स बीजेपी की ओर जा सकते हैं। सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा नेता को साथ लेना कांग्रेस परिवर्तन और वोटबैंक के लिए फायदेमंद सिद्ध होगा। सिधु जैसे बेबाकी सांड को लगाम डालनी होगी। बीजेपी के रविशंकर प्रसाद ने यहाँ तक एक पत्रकार को कह दिया कि बेशर्म राहुल के लिए हम ही काफ़ी है, प्रधानमंत्री जवाब देंगे क्या? यही दर्शाता है कि रस्सी जल्दी मगर बल नहीं गए। बीजेपी के प्रवक्ताओं के साथ गोदी मीडिया के लालची पत्रकारों ने जो खेल खेला है उनके सामने तीन राज्यों की कांग्रेसी जीत एक थप्पड़ है। यही गोदी मीडिया हवा के रुख के साथ कांग्रेस की गोदी में बैठने का प्रयास करेंगे। उनके लिए पत्रकारिता नहीं, दलाली है।

किसीने पूछा कि हार में बड़ी ज़िम्मेदारी किसकी? बीजेपी की वादाखिलाफी, नॉटबंदी, जीएसटी, मंदिर-मस्जिद, योगी के विवादी बयान, वसुंधराजी ने बेरोजगार युवाओं को गुंडे कहें, प्रवक्ताओं और मीडिया के गठबंधन की भूमिका रही। देश के सबसे ज़िम्मेदार पद की गरिमा को गिराने वाले मोदीजी ने सोनिया जी के लिए की हुई व्यक्तिगत टिप्पणीयाँ, विधवा स्त्री का बयान, अपनी माँ के नाम रोते हुए दिया भाषण और माँ के नाम मार्केटिंग जैसे कुकर्मों ने हार की ज़मीं तैयार कर दी।

सबसे ज्यादा तारीफ़ मीडिया के लोग ये करने लगे कि जीत के बाद राहुल गांधी प्रेस कांफ्रेस में जिस संयम, विनम्र भाषा, सरलता एवं – “हम किसीको देश से मुक्त करना नहीं चाहेंगे, लड़कर जीतेंगे” – कहा ये देश की जनता को भी प्रभावित कर गया। 2019 में भी बीजेपी ने इन सारी गलतियों को सुधारने का प्रयास नहीं किया तो ये जनता है। बिखेर देगी पल में। इसे हम वाजपेयी-अडवानी-सुषमा की बीजेपी नहीं कह सकते।

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गज़लाष्टमी - सॉलिड महेता (गुजराती ग़ज़ल संग्रह)

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