Wednesday, May 22, 2019

यह रिश्ता





















यह रिश्ता है 
बार बार कैसे कहूं 
समझाऊं भी कैसे 

यह रिश्ता है 
मेरी आँखों में और
मैं देखूं तेरी आँखों में

यह रिश्ता है
कहने - समझाने से नहीं
जोड़ने से नहीं जुड़ता

यह रिश्ता है
आँख झपकते ही जुड़ जाएं
पलकों से आँसूं गिरे !


*
पंकज त्रिवेदी 

5 comments:

  1. आप से बस यही उम्मीद थी।
    धन्यवाद

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25 -05-2019) को "वक्त" (चर्चा अंक- 3346) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  3. भावपूर्ण पंक्तियाँ आदरणीय पंकज जी | सादर

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