Sunday, January 19, 2020

गज़लाष्टमी - सॉलिड महेता (गुजराती ग़ज़ल संग्रह)

हद से अनहद - ऋचा फ़ोगाट (कविताएँ)

करवटें मौसम की - डॉ डेज़ी (कविताएँ)

मन वसेलां मानवी - कानजी वाढेर (गुजराती चरित्र)

बंद मुट्ठी - डॉ. हंसा दीप (उपन्यास-गुजराती अनुवाद)

कनाडा स्थित सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. हंसा दीप के 'बंद मुट्ठी' उपन्यास का गुजराती अनुवाद
अनुवादक : पंकज त्रिवेदी

https://www.amazon.in/BANDH-MUTHTHI-DR-HANSA-DEEP/dp/8194261031/ref=sr_1_4?keywords=vishwagatha&qid=1579500197&sr=8-4

BANDH MUTHTHI

by DR HANSA DEEP and Translation by PANKAJ TRIVEDI | 1 January 2019
More Buying Choices
₹350 (1 new offer)

छोटी सी बात - रामचरण हर्षाना (कहानी संग्रह)

पुरुष नो चहेरो - बकुल दवे (गुजराती कहानी संग्रह)

कहाँ हो तुम? भावना भट्ट

Friday, June 28, 2019

मैं ऐसा ही हूँ













मैं ऐसा ही हूँ !

मेरे बारे में आप ज्यादा न सोचें 
मैं सिर्फ आपसे ही नहीं, कभी-कभी  
अपनेआप से भी दूर चला जाता हूँ !
अपनी ऑरा को अलग कर देखता हूँ ! 

सोचता भी नहीं कि 
ऐसा क्यूँ होता है मेरे साथ ये सवाल 
ठीक नहीं, आपके साथ भी होता होगा 
हो सकता है आपके साथ नहीं भी ! 

यह जो सारी प्रक्रिया है वो प्रवाहिता है   
अपने जीवन का छोटा सा हिस्सा है
मैं सहजता में जी सकता हूँ, उसीका आश्चर्य है  
फिर भी खुशी से चलता रहता हूँ !

अपेक्षाओं का आवागमन नहीं है 
उस पर ज़बरदस्ती कभी नहीं करता 
मैं उपेक्षा तो कभी भी नहीं करता मगर 
अपेक्षाओं को चुपचाप देखता हूँ ! 

आकलन करता हूँ खुद का 
ऐसा क्या रह गया जो मुझे चाहिए
प्रत्युत्तर नहीं मिलता, न आपसे, 
न किसीसे, न खुद से  और  न खुदा से ! 

ऐसा भी नहीं कि जीवन से उब गया हूँ 
मुस्कुराता, ठहाके लगाता हूँ, लोगों से मिलता हूँ 
क्षणिक गुस्सा, फिर शांत या बह जाता हूँ  
अपनेआप से कुछ चुराता नहीं हूँ !

आयने में खुद को देख लेता हूँ 
खुद पर शर्म नहीं आती न घीन आती है 
कुछ कचोटता भी नहीं है खुद को देखकर 
सुकून सा महसूस करता हूँ ! 

पूजा करता नहीं हूँ, भगवान की या इंसान की 
अच्छे कार्य में भगवान होते हैं, उसे मिलता हूँ 
किसीकी मुस्कराहट मिलती है तो लगता है 
जैसे आशीर्वाद मिल गया है मुझे ! 

सच में, मैं ऐसा ही हूँ !
*
पंकज त्रिवेदी 
28 जून 2019   

Saturday, June 22, 2019

















ए खुदा ! आ बैठ कभी तू मेरी भी चौखट पे 
जैसे लोग भी आकर बैठते है तेरी चौखट पे 

मुझे फुर्सत कहाँ है अपने संसार से तेरे लिए 
तूने दिए है कुछ काम और कुछ बोज सर पे 

लोग भी आते-जाते माँगते है तुझसे ही कुछ
भरोसा कर ले तू, बोज मन का हो तो मुझ पे
*
- पंकज त्रिवेदी

गज़लाष्टमी - सॉलिड महेता (गुजराती ग़ज़ल संग्रह)

https://www.amazon.in/GAZALASHTAMI-SOLID-MEHTA/dp/8194038685/ref=sr_1_8?keywords=vishwagatha&qid=1579500905&sr=8-8 ...