Friday, November 30, 2018

विश्व गाथा पत्रिका : अक्टूबर-दिसंबर 2018

विश्व गाथा 
(त्रैमासिक हिन्दी साहित्यिक पत्रिका) सुरेन्द्रनगर - गुजरात
*
अक्टूबर-नवम्बर-दिसंबर : 2018
*
पत्रिका भेजने की कार्यवाही आज से शुरू हो रही है. कृपया धैर्य रखकर सहयोग दें. पत्रिका पहुँचाने में एक 10-12 दिन लग सकते हैं.





नेह
















नेह फूटता है निर्झर सा
बहता, तपता सा तुम्हारे मेरे
जीवन की सराबोर अनुभूतियों सा
छुअन, पसीजन, मृदुल अधरों सा
आँखों के पनीले और रूहानी सांसों को
स्पंदित करता प्यार मेरा

मैंने जब भी
तुम्हें मिलना चाहा
कुछ न कहकर जो भी कहा
तुम हमेशा हँसती रही
ठहाका लगाकर !

जैसे मेरे प्रस्ताव को तुम
गुब्बारा बनाकर
अपने हाथों में लिए लहराती हुई
समंदर की लहरों पर नाचती-गाती हुई
दूर-सुदूर चली जाती हों
और मैं
तुम्हारी अदृश्य होती परछाईं में
पिघलता रहता हूँ..

तुम हो कि जहाँ रुक जाती हों
वहीं होती है नेह की बारिशें
*
- पंकज त्रिवेदी

याद है तुम्हें?

याद है तुम्हें?
एक दिन पूछा था तुमने मुझे
तुम मुझे कितना प्यार करते हो?
तब मैं चुप था और
तुम्हारा गुस्सा फूट पड़ा था |

प्यार कौन किसीसे कितना करता है
यह सवाल ही असमंजस में डाल देता है
मगर जिद्द भी तो थी तुम्हारी....

सुनो, मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि-
माँ की गोद में जब बच्चा सोता है तब
वो नहीं पूछता;
'माँ, मुझे कितना प्यार करती हो?"

और
माँ के मन में सवाल पैदा ही नहीं होता कि-
उनके बेटे को कितना प्यार है...?

* * * * *
- पंकज त्रिवेदी

Monday, November 26, 2018

बेस्ट सेलर : ‘गॉन विद द विंड’

25 नवंबर 2018 : अखंड राष्ट्र (दैनिक) लखनऊ और मुंबई - में 
मेरा स्तम्भ - प्रत्यंचा
*
प्रत्यंचा : बेस्ट सेलर : ‘गॉन विद द विंड’ – पंकज त्रिवेदी
*

कुछ सालों पहले हिन्दी पत्रकार-लेखिका मनीषा पाण्डेय ने जानकारी दी थी कि बेस्ट सेलर किताब ‘गॉन विद द विंड’ का हिन्दी अनुवाद हो चूका है। युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखे गए इस पुस्तक में पश्चिम के देशो में अपने विविध कालखंडो में उत्कृष्ठ साहित्यिक कृतियों का सृजन हुआ है। रोम की दास्तां का युग, नेपोलियन बोनापार्ट के हिंसात्मक हमले, दो दो विश्वयुद्ध, नागासाकी-हिरोशीमा के परमाणु हमले, जर्मनी में नाज़ीओं का आतंक या गोरे के सामने काले का संघर्ष। दुनिया के ये सारे संघर्षों में ज्यादातर सत्ता के लिए तो कहीं रंगभेद मुख्य कारण रहा था। ये मानसिकता उस दौर में थी और आज भी है। तब सत्ता से महासत्ता प्राप्त करने का खेल विविध देशों के बीच होता था, आज प्रत्येक इंसान में वही आधिपत्य, स्वार्थ, ईर्ष्या के साथ जीवन व्यवहार में भी राजनीति का अनुभव महसूस होता था। 2019 में आनेवाले लोकसभा चुनाव से पहले कहीं न कहीं प्रजा असमंजस में है, बौद्धिकों की असलामाती है, एक्टिविस्ट खतरे में है, देश के बड़े उद्योगपति, कलाकार आदि को कहीं न कहीं समाधान या समर्पण करना मजबूरी है। कहने का तात्पर्य यही कि इतिहास के पन्नों पर आदि मानव से आजतक इंसान निरंतर संघर्ष करता रहा है। यही कायदा जंगल में इसलिए होता था कि वहाँ शक्ति थी मगर बुद्धि नहीं। इंसान पशुता से भी आगे इसलिए बढ़ गया क्यूंकि उनमें स्वार्थ-ईर्ष्या होने से पशुता में भी क्रूरता का समन्वय हो गया है।

ऐसे ही संघर्ष के कथानक में भी ताजगी का अनुभव होता है। 1936 में यह उपन्यास प्रसिद्द हुआ था। जिसका ज़िक्र आज भी बड़ी कठोरता से किया जाता है। अमरीका के गृहयुद्ध पर आधारित और मारग्रेट मिशेल द्वारा लिखित यह उपन्यास यानी ‘गॉन विद द विंड’। समग्र विश्व में सिर्फ युद्धाकथा ही नहीं अपितु कथानक, चरित्र, आलेखन एवं प्रेमकथा की दृष्टि से यह उपन्यास उत्तम साबित हुआ । इस किताब का प्रकाशन होते ही शुरू के छ: महीने में ही रिकार्ड ब्रेक दस लाख से ज्यादा प्रतियाँ बिक गई थी। एक ही दिन में पचास हज़ार प्रतियाँ बिकने का भी रिकार्ड भी इसी किताब के नाम हुआ था। इस उपन्यास के कथानक पर हॉलीवुड के डायरेक्टर विक्टर फ्लेमिंगे ने एक क्लासिक फिल्म बनाई थी। इसी फिल्म के बाद ही क्लासिक फ़िल्में और उसके प्रति दर्शकों का रुझान बढ़ा था। फिल्म में क्लार्क गेबल और विवियन ली ने मुख्य भूमिका की थी।

दक्षिण अमरीका के धनपति ज़मींदार परिवार की बेटी स्कारलेट-ऑ-हारा और एशली बिलकिस के रोमांस से भरपूर यह उपन्यास है। अमरीका के विनाशक गृहयुद्ध के दौरान अनगिनत गाँव-शहर उजड़ जाते हैं। मकानों में आग लगाई जाती है और अनेक परिवार बिछड़ जाते हैं। मानों इसी का हिन्दी अनुवाद के शीर्षक की तरह – ‘कारवाँ गुज़र गया..’ जैसे हालत पैदा हो जाते हैं। इस सारे विद्ध्वंश की ज़मीन पर एक नया और बिना रंगभेद के अमरीका का निर्माण होता है। ‘गॉन विद द विंड’ के कथानक में दिखाई देता दक्षिण अमरीका का जनजीवन, संस्कृति और युद्ध के पीड़ित लोगों की करुण गाथा का सूक्ष्मतापूर्ण, दृश्यात्मक आलेखन हुआ है। जीवन के विनाशकारी पलों के बीच नवजीवन की आस में संघर्ष करती प्रजा के बीच स्कारलेट-ऑ-हारा और एशली बिलकिस की यात्रा कहाँ से कहाँ पहुँचती है। ऐसे जीवन में कैसे बदलाव आता है, उसीका सूक्ष्म-संवेदनात्मक वर्णन रोमांच से भर देता है। 

मारग्रेट मिशेल लेखिका नहीं मगर ‘आटलांटा जनरल’ दैनिक की पत्रकार के रूप में प्रसिद्द थीं। उनकी साहसिकता बेमिसाल थी। पत्रकार होने के कारण उन्हें हमेशा साहस करने में खुशी मिलती। उसी के परिणाम स्वरुप सिर्फ छब्बीस वर्ष की उम्र में घुटने में गंभीर चोट के कारण वो अपाहिज हो गई थी। यही कारण उन्हें अब बिस्तर पे रहने की मजबूरी हो गई थी। ये युद्धकथा उनकी मनोभूमि पर अंकित हो गई थी। उसने बिस्तर पे बैठकर ही ‘गॉन विद द विंड’ लिखने की शुरुआत की थी। उसे क्या पता था कि उनकी कलम से लिखी गई यह कथा एक इतिहास बन जाएंगी और विश्व को स्तब्ध कर देंगी। 


मारग्रेट मिशेल के लिए यह पहली और अंतिम साहित्यिक कृति थी। उसके उपन्यास में कथा साहित्य के साथ अस्खलित काव्यात्मक प्रवाहिता के कारण भाषासौंदर्य खिल उठा है। उसमें रोमांस का गुलाबी रंग घुल जाने से नदी के प्रवाह की तरह बहता है। यह इसलिए संभव हुआ क्यूंकि कथानक ही दमदार है। ‘गॉन विद द विंड’ की कथा में से एक भावक के रूप में गुज़रते समय बड़े केनवास पर फ़ैले हुए जीवन को देखने और महसूस करने का मानों रोमांचक प्रवास हो। यह कथा ‘कल, आज और कल’ की कथा है। युद्ध की त्रासदी, पीड़ादायक एवं करुण परिस्थिति में से गुज़रते मानवजीवन का इतिहास का आलेखन हुआ है, उसे गहराई से समझना चाहिए। हर पल युद्ध की भयावह वास्तविकता जैसे किसी शेर के खुले जबड़े की तरह मानवजीवन को खाने के लिए तत्पर हो! इसका वर्णन दर्शन के बिना संभव नहीं है।

इस महान कृति ने विश्व साहित्य में अजेय स्थान प्राप्त किया है और उसका हिन्दी अनुवाद भी कुछ वर्ष पहले होने से भारतीय भाषा के खजाने में यह अनमोल रत्न भी है। जो हमारे साहित्य को नई दिशा और गति दे सकता है।
*** 

Wednesday, November 21, 2018

शायद यही प्यार है


















इतना भी प्यार मत करो
हम पल पल खुद से बिछड़ जाएं
इतना भी साथ न निभाओ
हम पल पल खुद के लिए भी न जिएं
इतना भी न कहो हमें कुछ
हम कुछ भी समझ ही न पाएं 

क्योंकि -
मैं अहसास को पाता हूँ और
मौन की भाषा समझता हूँ
प्रकृति के साथ रहता हूँ
और वहाँ शोर नहीं होता
मन की शांति होती है वहाँ और
प्रसन्नता होती है
शायद यही प्यार है !
*
- पंकज त्रिवेदी

वो है सिर्फ घुटन

















तुम जिसे अनुशासित कहते हो
मैं उस अनुशासन में जी नहीं सकता
क्योंकि मैं इन्सान हूँ और वो हमेशा
अनुशासन में जी नहीं सकता

तुम मुझे प्यार नहीं करते
मुझ पर अंकुश रखते हो शायद
और मैं निरंकुश हूँ इसलिए
इंसानियत को चाहता हूँ
पेड़-पौधों और जानवरों को भी
चाहता हूँ, क्योंकि वो मुझसे
अनुशासन की अपेक्षा नहीं रखते और
न मुझ पर अंकुश के डोरे डालते है

प्यार करना वैसे तो इस समाज में
अनुशासन को तोड़ना ही है !
इसलिए मैं कहीं भी किसी के बंधन में
उनके अधिकार क्षेत्र में महसूस करता हूँ
वो है सिर्फ - घुटन !!!
*
- पंकज त्रिवेदी

अलसुबह














अलसुबह
मैं फिनिक्स बनकर
उठ खड़ा होता हूँ
अपने अस्तित्व को
निखारने के लिए !


दिनभर जद्दोजहद में
लगे रहते हैं मेरे ही
चाहने वाले मुझे
गिराने के लिए !

***

Saturday, November 17, 2018

क्या इसे रामराज्य कहते हैं?


लखनऊ और मुंबई 17 नवंबर 2018, अखंड राष्ट्र दैनिक में स्तम्भ : प्रत्यंचा
*
प्रत्यंचा : क्या इसे ‘रामराज्य’ कहते हैं? - पंकज त्रिवेदी

अंबिकापुर में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने देशभक्त और बुद्धिमान होने के लिए अपनी ही एक परिभाषा दे दी। मनोज तिवारी ने कहा – “वे लोग देशभक्त और बुद्धिमान होते हैं, जिनकी माँ छठपूजा करती हैं। सोनिया गांधी ने कभी छठ पूजा नहीं की, अगर सोनिया जी ने छठ पूजा की होंती तो बड़ा बुद्धिमान..आता.. छठ की पूजा किया करिए आप लोग.. न कर सकें तो साथ में शामिल होइए।''


महिलाओं का सम्मान नहीं करने वाला ये सड़कछाप गवैया पहले भी एक शिक्षिका को मंच से अपमानित करते हुए उतरने का आदेश देकर कार्यवाही करने की धमकी दे चूका है। बहुत से राज्यों में छठ पूजा नहीं होती। गुजरात में भी नहीं होती तो क्या मोदी जी और अमित शाह को भी मनोज तिवारी ने उस कटघरे में खड़ा कर दिया, जिसके लिए उन्हों ने व्यंग्य किया था ! बीजेपी आलाकमान के आगे पीछे चलकर ये गवैया क्या साबित करना चाहता है? जनता यदि एक कलाकार का सम्मान करते हुए उसे सांसद बनने का मौका दे रही है इसका मतलब यह तो नहीं कि घमंड सर पे चढ़कर बोले। आप अगर सांसद बन गए है तो उसकी नींव में आपकी गायकी है। जनता उस लोक गायक को चाहते थे इसलिए चुनाव में जीताया है। किसी की माँ के लिए अपशब्द बोलने वाला यह मनोज तिवारी को ये पता होना चाहिए कि कलाकार माँ की कोख़ से पैदा होते हैं, सांसद नहीं !


ऐसी ही दूसरी घटना दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन से पहले बीजेपी सांसद मनोज तिवारी के हंगामे का मामला तूल पकड़ चूका था। इस प्रकरण में एक वीडियो सामने आया था, जिसमें आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान सांसद मनोज तिवारी को स्टेज से नीचे धक्का देते हुए दिख रहे थे। ध्यान हो कि मनोज तिवारी ने सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन से पहले अपने साथ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा बदसलूकी करने का आरोप लगाया था और एक पुलिसकर्मी को थप्पड़ जड़ दिया था। सोशल मीडिया पर मनोज तिवारी की कड़ी आलोचना हो रही थी। दरअसल महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप अगर नेता-अभिनेता बन गए तो क्या जनता पर अत्याचार करने का अधिकार मिल जाता है? जरुरी नहीं कि आप शारीरिक अत्याचार ही करें। अगर आप किसी का सरेआम अपमान करते हैं तो वो भी अत्याचार कहा जाएगा।


सलमान खान को काले हिरन और हीट एंड रन के मामले में जिस तरह से इस सरकार ने बचा लिया है, उस बात से जनता अनजान नहीं है। जब आप किसी व्यक्ति या प्राणी की जान ले लेते हैं तब अभिनेता होने के कारण सरकार बचा लेती है ! मोदी जी की सरकार ने सेलिब्रिटीज को उनकी प्रसिद्धि के अनुसार बीजेपी के गुणगान गाने के लिए रख दिया है। हो सकता है कुछ लोग खुशी से गए होंगे और कुछ लोग मजबूरन जुड़े होंगे। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन राजनीति में अपने मित्र और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कारण आएं और इलाहाबाद क्षेत्र से जीत भी प्राप्त की थी। उनके पिता कवि हरिवंशराय बच्चन सम्पूर्ण कांग्रेसी थे। ‘कुछ दिन तो गुज़ारो गुजरात में’ विज्ञापन के लिए अमिताभ जी ने पैसे नहीं लिए थे। तब मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। अब वो प्रधानमंत्री बन गए तो नॉटबंदी और जीएसटी के कारण देश के उद्योगपति एवं बड़े व्यापारीओं पर शिकंजा कसने के हौवा दिखाकर मोदी जी ने अपनी ओर खींच लिया है। सोचने वाली बात यह है कि कायदे का डंडा दिखाकर मजबूर किया जाता है और अगर कोई समर्पण नहीं करते तो उनको परेशान किया जाता है। अप्रत्यक्ष रूप में यह इमरजंसी तो है।


सरकार किसी भी दल की हो, जनता का शोषण ही उनका मुख्य एजंडा रहा है। भ्रष्टाचार कांग्रेस सरकार में बहुत हुआ। जनता के गुस्से को देखकर मोदी जी के प्रति पूरे देश ने विश्वास जताया और रिकार्डब्रेक बहुमत दिलाकर प्रधानमंत्री बना दिया। इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी प्रधानमंत्री देश का मालिक बन जाएं। सुप्रीमकोर्ट के पूर्व जस्टिस चेलामेश्वर ने गर्भित खुलासा किया है कि हम तीन जजों ने जो प्रेस कांफ्रेंस की थी उसका खुलासा एक वर्ष तक नहीं करूँगा । अदालतों में जजों की नियुक्ति में भी सरकार का हस्तक्षेप भी उस विवाद की जड़ में था । सीबीआई और आरबीआई के साथ सरकार की ज्यादती अब नई बात नहीं है। उत्तर कोरिया में किम जोंग-उन ने लोकतंत्र को ख़त्म करने के लिए क्रूरता का सहारा लिया था। हमारे यहाँ महंगाई, नॉटबंदी, रोजगारी और किसानों की आत्महत्या, हिन्दुत्त्व के नाम धर्म और जातिवाद से जनता के बीच असुरक्षा का खौफ़ पैदा कर दिया गया है। क्या इसे ‘रामराज्य’ कहते हैं? चुनाव से पहले मंदिर बनाने का वचन एजंडा में शामिल था। मंदिर कब बनेगा ये कोई नहीं जानता मगर 2019 का चुनाव यूपी केन्द्रित होगा। मोदी जी अपने भाषणों में जो तेवर दिखाते हैं, ‘ऐसा करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए..’ जैसे सवालों का जनता उत्साह से जवाब देती थी। अब लोग समझ गए हैं कि झूठ और ज्यादती का जवाब कैसे दिया जाएं। राहुल गांधी ने भी पिछले कुछ भाषणों में शिष्ट भाषा, संयम और मद्धम आवाज़ में जो कहा उसे जनता गौर से सुन रही है, समझ रही है। सता कभी भी पलट सकती है। आप किसी भी समय हीरो से जीरो हो सकते हो। आपके साथ चलने वाले और आपकी हाँ में हाँ मिलाने वाले दो ही पल में पलटी खायेगें। फिर सत्ता नहीं तो क्या करोगे। फिर तो आपके शब्द अनुसार ‘झोला’ लेकर निकलना पड़ेगा ।” 2019 में नतीजा ऐसा आएगा कि घमंडी वाणी-विलास के सामने संयमित और मुद्दे पर बात करने वाली कांग्रेस कांटे की टक्कर देगी। देश के अन्य प्रांतीय दल भी वर्त्तमान सरकार से नाराज़ है। यूपी, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी अवांछित चुनावी परिणाम आ सकते है।
***


गज़ब का सफ़र


ज़िंदगी ने रफ़्तार पकड़ ली है किसी सुपर फ़ास्ट ट्रेन की तरह |  हर दिन नई बात, नए काम और नई मंजिल के सपने को पूर्ण करने के लिए घर से निकलना और शाम होते हुए, घर लौटकर चाय पीते हुए दिनभर के अनुभवों को परिजनों के साथ साझा करना...


फिर सभी अपने अपने कार्यों में लिप्त और मैं दिनभर की डाक पढ़कर आँगन में टहलता हुआ देख लेता हूँ मेरे प्रिय हरसिंगार को | उनकी मुस्कराहट ऊर्जा देती है मुझे और मैं अपने संपादन कार्य को समर्पित होता हुआ कई साहित्यकारों की रचनाएं पढ़ता हुआ दूर दूर निकल जाता हूँ... गज़ब का सफ़र होता है यह !
*
पंकज त्रिवेदी

Friday, November 16, 2018


पल छूटता चलता है
मगर मन नहीं
पल में मिला देता है
पल में बिछड़ जाता है


ये कैसा पल है जो
लौट-लौटकर आता है
जिस पल से छूटना चाहते हैं
वहीं पे लाकर खड़ा कर देता है


पल विलीन तो होता है मगर
उसी पल एक और नया पल
जीवित हो जाता है और वोही
हमें यहाँ से वहाँ ले जाता है


ये पल भी बहुत कमाल होते हैं
जिसका इंतज़ार हों
वो रहे न भी रहें या साथ छोड़ दें
किन्तु पल के बिना कुछ नहीं


यही पल ही तो है
जो मानुष से क्या क्या बना देता है
विचारों से या साथ से
कोई पल अपना बना लें और
कोई आकर भी हमें छोड़ दें


पल का होना तो एक बहाना है मेरा-तुम्हारा
गुजरता पल नियति का खेल है सारा
हर पल का नया रोमांच भी है और गम भी
बेशुमार मिलता है जो भी मिलता है
बस उसी एक पल में !

*
पंकज त्रिवेदी
16 नवंबर 2018

Thursday, November 15, 2018

चंद पंक्तियाँ

 
गज़ब का प्यार हो तो इंतज़ार का मज़ा भी हो
कितना दर्द देती है फिर भी मीठा मीठा सा हो
*

मैं खुद से ही खो गया था जैसे मेरा वजूद ही नहीं
ये कैसी परछाईं पल रही है मेरे अंदर सबूत ही नहीं
*

शायराना अंदाज़े बयाँ तो तुम्हारी कदरदानी है
कैसे कुछ लिखता मैं यह तुम्हारी मेहरबानी है
*
पंकज त्रिवेदी

Wednesday, November 14, 2018

तुम्हारी आँखें

तुम्हारी आँखें
बहुत कुछ कह देती है
तुम्हें बोलने की ज़रूरत
महसूस ही नहीं होती है

तुम्हारी आँखें
मुझे इस कदर देखती है
जैसे तुम मुझमें उतर जाती हो
मेरे दिल की धड़कन सुनती
मेरी रूह की आवाज़ और
अनकही बातें समझ लेती हो

तुम्हारी आँखें
वो माध्यम है जिसके ज़रिये
तुम मेरे पूरे व्यक्तित्त्व को
खंगाल लेती हो और तो और
मज़ेदार बात यह है कि
तुम्हारी चुप्पी महसूस करता
तुम्हारी आँखों से ये मैं जान लेता हूँ

तुम्हारी आँखें
बड़ी तेज़ है, जिससे कभी तेरे
प्यार की नमीं उभरती है तो कभी
मेरे उतावलेपन को रोकने के लिए
ये आँखें इशारा कर रोक लेती है
तुम मुझे ऐसे ही देखती रहो और
मैं तुम्हें देखकर ऐसी ज़िंदगी जी लूं
जिस पे तुम्हें गर्व महसूस हो !
*

रिश्तों की कतरन





मैं देख रहा था उन्हें
रिश्तों की कतरन करते हुए निर्ममता से 
बेपरवाह होकर, न चेहरे पर कोई शिकन
न उमड़ते प्रसन्नता के भाव और
न आँखों से टपकती नमीं...

उन्हें लगता था कि
न कोई उन्हें देखता है और अगर
देखें भी तो उन्हें क्या?
बेफ़िक्र था वो और हाथ खूब
चल रहे थे बेहरमी की कैंची पर

सोचता हूँ कि इंसान कितना बदल रहा है
डिजिटल इण्डिया के साथ और विकास के नाम
हर कोई काली सडकों पर भागता हुआ
नज़र आता है जैसे वो काली नागिन पे
सवार होकर दिलों-दिमाग में भरा हुआ
ज़हर उगल रहा है....

इंसानियत और संवेदना इतिहास बन गया है
गाँव, खेत-खलिहान और मंदिर के चौराहे पे
नहीं होते भजन-संध्या आरती और बुजुर्गों के
अनुभवों की वो बातें.. पोखर के किनारे फैले
बरगद के पेड़ों के झूले के साथ बहती ठंडी हवा 

कैसे जी पाऊंगा मैं और कैसे ताल बैठेगा
मेरे जीवन का इस नई पीढी के साथ और  
बदलती देश की सूरत को देखकर
सिकुड़ जाता है मेरा मन...

कोसता रहता हूँ खुद को इंसान के रूप में
जन्म क्यूं लिया मैंने... अच्छा होता अगर
मैं गौ बनकर जन्म लेता और किसी नेता के
जश्न में मेरे गौमांस से मेजबानी होती
और सारे देश में विकास के नाम चर्चाएँ
ज़ोर पकड़ती समाचार चैनलों के लिए
मसाला परोसती जैसे कोई बानगी
*


गज़लाष्टमी - सॉलिड महेता (गुजराती ग़ज़ल संग्रह)

https://www.amazon.in/GAZALASHTAMI-SOLID-MEHTA/dp/8194038685/ref=sr_1_8?keywords=vishwagatha&qid=1579500905&sr=8-8 ...