Friday, November 30, 2018

याद है तुम्हें?

याद है तुम्हें?
एक दिन पूछा था तुमने मुझे
तुम मुझे कितना प्यार करते हो?
तब मैं चुप था और
तुम्हारा गुस्सा फूट पड़ा था |

प्यार कौन किसीसे कितना करता है
यह सवाल ही असमंजस में डाल देता है
मगर जिद्द भी तो थी तुम्हारी....

सुनो, मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि-
माँ की गोद में जब बच्चा सोता है तब
वो नहीं पूछता;
'माँ, मुझे कितना प्यार करती हो?"

और
माँ के मन में सवाल पैदा ही नहीं होता कि-
उनके बेटे को कितना प्यार है...?

* * * * *
- पंकज त्रिवेदी

3 comments:

  1. आदरणीय पंकज जी - प्रेम की ये परिभाषा बहुत ही अप्रितम और अद्भुत है| माँ बेटे के माध्यम से प्यार को अत्यंत महत्वपूर्ण परिभाषा में बांध दिया आपने | सचमुच जहाँ प्रश्न ही प्रश्न हो वहां प्रेम संदिग्ध सा हो जाता है | अत्यंत भाव स्पर्शी लेखन के लिए शुभकामनायें |

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  2. रेणु जी और मेहता जी, आप दोनों का आभारी हूँ

    रेणु जी, आप तो प्रत्येक रचना को जीती है इसलिए आपकी टिप्पणी गद्य कविता से कम नहीं.

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