मैंने कुछ
लोगों को देखा है
जो बहुत
चुपके से आपके
जिस्म को
छू लेते हैं जैसे
रेंगता हुआ
कीड़ा !
आपके जिस्म
में छेद करके
धीरे धीरे
वो अंदर तक उतर जाएं
और हमें
पता भी न चलें क्या हुआ
रेंगता हुआ
कीड़ा !
आपके जिस्म
में इस तरह घुमता रहे
जैसे लकड़ी
में दीमक हो और बाहरी
सतह जस की
तस रखकर खा जाएं
रेंगता हुआ
कीड़ा !
जब आपको
पता चले कि कोई आपके
कंधे पे
हाथ रखकर मीठी बातों में
आपकी
भावनाओं से खिलवाड़ करता वो था
रेंगता हुआ
कीड़ा !
*
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 21 नवंबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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आदरणीया पम्मी जी, आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ. बहुत सुखद अनुभव हुआ. आपने मेरी रचना को इस लायक समझा यह मेरा सौभाग्य है. मैं तहे दिल से आभारी हूँ.
Deleteयथार्थपरक रचना
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार जी, आपका धन्यवाद
Deleteसटीक यथार्थ, अद्भुत शैली।।
ReplyDeleteउत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए धन्यवाद
Deleteसार्थक प्रतीक के माध्यम से जीवन का वीभत्स सच उजागर हुआ है आदरणीय पंकज जी | आपकी अपनी शैली अत्यंत सराहनीय है | सादर --
ReplyDeleteरेणु जी, मनमून हूँ
Deleteप्रतीक के माध्यम से आज के स्वार्थ भरे रिश्तों के सच को उजागर किया है आपने .... बधाई स्वीकारें
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