Wednesday, November 14, 2018

मैंने कुछ लोगों को देखा है





मैंने कुछ लोगों को देखा है
जो बहुत चुपके से आपके
जिस्म को छू लेते हैं जैसे
रेंगता हुआ कीड़ा !

आपके जिस्म में छेद करके
धीरे धीरे वो अंदर तक उतर जाएं
और हमें पता भी न चलें क्या हुआ
रेंगता हुआ कीड़ा !

आपके जिस्म में इस तरह घुमता रहे
जैसे लकड़ी में दीमक हो और बाहरी
सतह जस की तस रखकर खा जाएं
रेंगता हुआ कीड़ा !

जब आपको पता चले कि कोई आपके
कंधे पे हाथ रखकर मीठी बातों में
आपकी भावनाओं से खिलवाड़ करता वो था
रेंगता हुआ कीड़ा !
*


9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 21 नवंबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



    .

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया पम्मी जी, आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ. बहुत सुखद अनुभव हुआ. आपने मेरी रचना को इस लायक समझा यह मेरा सौभाग्य है. मैं तहे दिल से आभारी हूँ.

      Delete
  2. यथार्थपरक रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय ओंकार जी, आपका धन्यवाद

      Delete
  3. सटीक यथार्थ, अद्भुत शैली।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए धन्यवाद

      Delete
  4. सार्थक प्रतीक के माध्यम से जीवन का वीभत्स सच उजागर हुआ है आदरणीय पंकज जी | आपकी अपनी शैली अत्यंत सराहनीय है | सादर --

    ReplyDelete
  5. प्रतीक के माध्यम से आज के स्वार्थ भरे रिश्तों के सच को उजागर किया है आपने .... बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete

गज़लाष्टमी - सॉलिड महेता (गुजराती ग़ज़ल संग्रह)

https://www.amazon.in/GAZALASHTAMI-SOLID-MEHTA/dp/8194038685/ref=sr_1_8?keywords=vishwagatha&qid=1579500905&sr=8-8 ...