Saturday, December 8, 2018

रूमानियत






















तेरे दीदार को तरसना बंद कर दिया है हमने
लोग प्यार कर ढूँढें बाहर तुम दिल में हो मेरे

*
मैं हर एक महफ़िल में मौजूद रहता था
लगता तुम्हीं से कहीं तो मुझे मिलना था
*

बात दिल में दबाओं या होठों के बीच कहीं
ये जो तेरी आँखें है कुछ कह न दें मुझे कहीं
*

तुम्हारी आँखों में समाया हुआ है ये मयखाना
बहकाने के हर अंदाज़ हो तुम और मयखाना
 

*
|| पंकज त्रिवेदी ||

*

4 comments:

  1. बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना है आदरणीय पंकज जी |रोमानियत से भरपूर | सादर

    ReplyDelete
  2. रेणु जी, धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. Replies
    1. अमित जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद

      Delete

गज़लाष्टमी - सॉलिड महेता (गुजराती ग़ज़ल संग्रह)

https://www.amazon.in/GAZALASHTAMI-SOLID-MEHTA/dp/8194038685/ref=sr_1_8?keywords=vishwagatha&qid=1579500905&sr=8-8 ...