मन के भीतर - पंकज त्रिवेदी
तुझसे न मिलने की कसम यूँ खाकर भी
राह के हर पत्थर से पता पूछते रहें हम
पत्थरों की बस्ती में जीने की आदत अब
सख्त तन में प्यार का झरना बहातें हम
ठोकरों का सिलसिला चलता भी रहा तो
गिरकर संभलते और राह चलते रहें हम
मैं अकेला हो गया हूँ तो भी क्या हुआ अब
मन के भीतर कारवाँ बहता लेकर चले हम
*
क्या बात है..!👌👌👌
ReplyDeleteपत्थरों की बस्ती में जीने की आदत अब
ReplyDeleteसख्त तन में प्यार का झरना बहातें हम
बहुत खूब आदरणीय पंकज जी
\ सभी शेर शानदार हैं आपके अपने अंदाज में | सादर