जुर्रत ख्व़ाब देखने की : रश्मि
बजाज
पंकज त्रिवेदी
अपनी कविताओं में निर्भीक संवाद करने वाली
सुप्रसिद्ध कवयित्री रश्मि बजाज समाज की नब्ज़ पकड़कर लिखती हैं। यूं तो रश्मि जी
द्विभाषी (हिन्दी, अंग्रेज़ी) साहित्यकर्मी है। इससे पूर्व उनके चार काव्य संकलन
प्रकाशित हो चुके हैं। महाविद्यालय में अंग्रेज़ी विभागाध्यक्ष, संयुक्त हिन्दी
सलाहकार समिति (भारत सरकार) की सदस्या होने के कारण दोनों भाषाओं के साहित्य पर उनका
अभ्यास रहा है और भाषाओं पर उनकी पकड़ रही है। अनगिनत पुरस्कारों से विभूषित रश्मि
बजाज बहुत ही सजग एवं सामाजिक उत्तरदायित्व को साहित्य के माध्यम से बड़ी स्पष्ट
बात कह देती हैं।
उनके इस काव्य संकलन में समाहित कविताओं में ऐसी
घटनाओं का ज़िक्र मिलेगा जो हमें अंदर तक झकझोर के रख देगा। उन्हों ने ही अपनी बात
लिखते हुए शीर्षक दिया है – ‘नहीं मरते ख्व़ाब... ।’ 2013 में ‘स्वयंसिद्धा’ काव्य
संकलन प्रकाशित होने के बाद अन्त: एवं बाह्य जगत में जो कुछ होता रहा, गुज़रता रहा
वो उनके हृदय की संवेदना को जगाता हुआ आक्रोश भरता गया। कहीं भ्रूण संहारित
बेटियाँ, माँ-बाप की ज़बरजस्ती, शोहदों की गुण्डागर्दी के कारण स्कूल छोड़ने पर
मजबूर लड़कियों की हृदयभेदी गुहार और न जाने पीड़ादायक अनगिनत घटनाओं में छुपे
अन्याय की गूँज कवयित्री के कानों में गूंजती रही। ‘कोई उन्मादी लिखता कविता...’
इस वाक्य एक ही वाक्य को उन्हों ने पूरे पन्ने पर उकेरा है, यही महत्त्व दर्शाता
है। उनकी पहली ही कविता ‘उन्मादी’ इस काव्य संकलन की गंगोत्री है –
इस विस्फोटक
विकराल समय में
ख्व़ाब देखना –
है एक जुर्रत
एक बग़ावत
एक अजूबा
कोई उन्मादी
लिखता कविता...
*
देश-दुनिया की वर्त्तमान परिस्थिति, बदलते
संयोग, सामजिक असमानता, नारी उपेक्षा एवं उत्पपीड़न आदि विषयों पर रश्मि जी की
संवेदना मुखरित होती है और दूसरों की पीड़ा को वो भोगती हैं। यहीं से उन्मादी
कवयित्री एक क्रांतिकारी विचार की मशाल लेकर सत्ता और समझदारों को जगाने के लिए लिखती
हैं। रश्मि जी की एक-एक कविताओं में सच्चाई, जोश और होश हमें महसूस होता है। ‘अवतार’
शीर्षक की कविता में से दो अंश –
खेतों में जब
उगें बंदूकें,
मेढ़ों पर जब
ढुलकें लाशें,
छल-छल गगरी से
बह निकले जब
रक्त की धार
*
अंधकार का
पटल चीर तब
कवि, तू ले
विराट अवतार !
*
साहित्य सिर्फ स्वयंसिद्धि नहीं है, जिस दुनिया
में हम जी रहे हैं उसे अगर हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम:’ की व्याख्या देते हैं तब
साहित्यकार में एक सम्पूर्ण जनहिताय वैचारिक शक्ति के दर्शन होने चाहिए। कहीं
आतंक, लूट, जातिवाद, राजनीति, अनैतिकता, अराजकता, संवेदनहीन समाज को देखकर ईश्वर
खुद मानव अवतार धारण कर पृथ्वी पर अवतरित होता है, ऐसे ही कवि को भी विराट अवतार
लेकर मानसिक विकृतियों के खिलाफ आवाज़ उठानी ही होगी। रश्मि जी ने ‘कवि और साधक’ कविता
में दोनों को एक पंक्ति में बिठा दिया है। कविता महज़ आवेश, कल्पना और संवेदना का
सम्पूट नहीं हैं। कविता तो साधना है। जो ब्रह्माजी की तरह ऐसी सृष्टि रचता है जहाँ
उच्च विचारों से जीवों की बौद्धिकता, संयम एवं सत्वशील हों –
बैठ समाधि
त्रिकालज्ञ
अन्तर्भेदी
साधक और कवि
खोज लाते हैं
नए ब्रह्माण्ड
विरच डालते हैं
नव सृष्टि !
*
कवयित्री पर बुद्ध एवं सूफ़ीयाना असर स्पष्ट नज़र
आता है, वो लिखती हैं -
ज़िंदा है तो
सिर्फ यही –
दरवेश और सूफ़ी,
तलाशते, तराशते
समेटे, संजोए
सब संभावनाएँ
इन्सान के
इंसान बने रहने की !
*
कुछ व्यक्ति विशेष कविताएँ हैं ‘रहेंगे जिंदा...’
विभाग शीर्षक के अंतर्गत। जिसमें अमृता प्रीतम, बाबा अम्बेडकर, अब्दुल कलाम की
अहमियत उजागर की गई है। ‘ये वक्त न तेरे थमने का...’ विभाग शीर्षक अंतर्गत जोशभरी
कविताएँ हैं। जिसमें फ़ैसला, जिहाद और सहस्त्रनेत्रिणी कविताएँ हमें सोचने पर मजबूर
कर देती है। एक कविता है जो ख़ास वातावरण को चित्रात्मक रूप में हमारे समक्ष रखी
गयी है। जे.एन.यू. – गंगा ढाबे के प्रांगण
में एक सांझ उतरी कविता, जिसका शीर्षक है – गंगा ढाबा और गंगातट । जिसमें जे.एन.यू.
की संस्कृति, संवाद और सोच स्पष्ट होती है।
जे.एन.यू. का
गंगाढाबा
ऋषिकेश का
वो गंगा-तट
दोनों मुझमें
एक वक्त हैं,
एक साथ ही ज़िंदा
*
आक्रोश, क्रांतिकारी, व्यक्ति विशेष, वारदात,
त्यौहार और ‘मैं हूँ स्त्री...’ विभाग शीर्षक अंतर्गत स्त्री केन्द्रित कविताएँ
मिलती हैं। जिसमें स्त्रियों के अन्याय के साथ ‘पुत्री जनक की’ विशेष रचना है। आत्मविश्वास
से भरी हुई कवयित्री रश्मि बजाज अपनेआप में प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी हैं।
अपनी बात, अपने विचार को मजबूती से रख सकती हैं। यही दर्शाता है कि आज की
स्त्रियाँ कितनी विचारशील एवं सक्षम होने लगी हैं। रश्मि बजाज जी को पांचवे काव्य
संकलन के लिए ढेरों बधाईयाँ।
* * *
विभागाध्यक्ष, अंग्रेज़ी विभाग,
वैश्य पी.जी. कॉलेज, भिवानी – 127021
(हरियाणा)