Monday, April 29, 2019
आँखें
बंद है मेरी आँखें
तेरे ही दीदार के लिए
तेरे ही दीदार के लिए
ए खुदा !
तू है कि खुली आँखों में
समाता जो नहीं !
*
पंकज त्रिवेदी
तू है कि खुली आँखों में
समाता जो नहीं !
*
पंकज त्रिवेदी
सपनों को सजाने के लिए अपनों के कंधे पर सर रखने की अपेक्षा कभी न रखो. खुद पे भरोसा करो. अपनी शक्तिओं को संजोकर सही समय पर उसका उपयोग करो. मौन से बड़ी कोई ताकत नहीं होती. मौन खुद से संवाद करने का जरिया है, जो आगे जाकर आत्मा की शक्ति बढाता हैं. भीतर से मजबूती प्रदान करता है. ज़िंदगी के केनवास पर ऐसा चित्र बनाओ जो देखते ही मन मोह लें. संघर्ष का सामना उसे करना होता है, जिसके ऊपर ईश्वर को भरोसा होता है. काले बादल छा जाएँ तो समझो बारिश होगी, आकाश में उडती मिट्टी भीगकर अपनी ज़मीं में मिल जायेगी. हमें भी मिट्टी में मिलना है मगर उस पवित्र संगम से पहले ईश्वर ने जिस कार्य के लिये हमें भेजा है उसे सम्पन्न करने लिए जान लड़ा दो. सफलता पाने की लालच बुरी चीज है, अपने किए पर संतुष्टि पाना ही सर्वोत्तम आनंद हैं.
- पंकज त्रिवेदी
Tuesday, April 16, 2019
ग़ज़ल
सियासती दांवपेंच में आवाम खो जाती है
बंद कमरों में चीखें भी कभी सो जाती है
अखबार भी कितने मजबूर हो गए है
ख़बर कुचलकर तारीफ़ की जाती है
अख़बार भी सिकुड़कर बैठ गया है
लगता किसी पे लगाम लगाई जाती है
देश की आझादी के मायने बहुत है
बाहरी नहीं अपनों से पाबंदी लग जाती है
श्याम रंगी सियाही तो कागज़ श्वेत रहा
ख़ुशहाल ज़िंदगी डरकर दब जाती है
चंद हाथों में सत्ता का सिमट जाना यूँ
कलम के बंदों की तौहीन हो जाती है
तुम आवाज़ भी कैसे उठाओगे यहाँ
कौन सुनेगा झूठ की नदी बह जाती है
*
पंकज त्रिवेदी
17 अप्रैल 2019
Sunday, April 14, 2019
तुम ही जानों..
कोई रंगीन सी कविता कैसे लिखूं मैं? तुम्हारा ख्व़ाब में आना छुप जाना हरसिंगार के पेड़ के पीछे और चुपके से देखना मुझे !
ऐसा लगें राधा मोहभरी नज़रों से देखती हों अपने कृष्ण के समग्र अस्तित्व को सृष्टि के कणकण में... राधे राधे करता हुआ कृष्ण भी ढूँढता तुम्हें ही, निकल जाता है दूर दूर तलक...
दोनों बेख़बर होकर भी कितने करीब पाते हैं, संभाल लेते है एक दूजे की भावनाओं को.. यह कोई खेल है या प्यार का परवान ! राधे बिना कृष्ण अधुरा है तो कृष्ण बिना राधा का क्या वजूद ये तुम ही जानों..
पंकज त्रिवेदी
ऐसा लगें राधा मोहभरी नज़रों से देखती हों अपने कृष्ण के समग्र अस्तित्व को सृष्टि के कणकण में... राधे राधे करता हुआ कृष्ण भी ढूँढता तुम्हें ही, निकल जाता है दूर दूर तलक...
दोनों बेख़बर होकर भी कितने करीब पाते हैं, संभाल लेते है एक दूजे की भावनाओं को.. यह कोई खेल है या प्यार का परवान ! राधे बिना कृष्ण अधुरा है तो कृष्ण बिना राधा का क्या वजूद ये तुम ही जानों..
पंकज त्रिवेदी
Subscribe to:
Posts (Atom)
गज़लाष्टमी - सॉलिड महेता (गुजराती ग़ज़ल संग्रह)
https://www.amazon.in/GAZALASHTAMI-SOLID-MEHTA/dp/8194038685/ref=sr_1_8?keywords=vishwagatha&qid=1579500905&sr=8-8 ...
-
https://www.amazon.in/KARVATEIN-MAUSAM-KI-DR-DAISY/dp/B083BZZHBX/ref=sr_1_6?keywords=vishwagatha&qid=1579500197&sr=8-6 ...
-
सियासती दांवपेंच में आवाम खो जाती है बंद कमरों में चीखें भी कभी सो जाती है अखबार भी कितने मजबूर हो गए है ख़बर कुचल...
-
https://www.amazon.in/Vasela-Manvi-Gujrathi-Character-Book/dp/8193343204/ref=sr_1_5?keywords=vishwagatha&qid=1579500197&sr=8-5 ...