Sunday, December 2, 2018

निबंध : मेरा झूला - पंकज त्रिवेदी


प्रतिदिन सुबह में झूले पर बैठकर खबरों से रूबरू होता हूँ .. हरसिंगार के पेड़ पर बुलबुल और चिड़ियों की मस्तीभरी आवाज़ सुनाई देती है .. सामने वाली दिवार पर एक बिल्ली आती है.. वैसे तो मैं समझता था कि बिल्ली घर-घर में जाकर दूध पी लेती होगी... जो किसी महिलाने गैस पर गरम करने के बाद थोडा ठंडा हो जाएं और फिर फ्रीज़ को समर्पित करें... उसी के बीच में यह चतुर बिल्ली दूध की पतीली गिराकर जितना बस में हो, पी लेती... मगर एक बार मैं उसे देख गया था उसे गिलहरीयों का शिकार करते हुए ! तब मन दु:खी हो गया था मगर सोचा कि यह भी प्रकृति का बनाया हुआ नियम है... बिल्ली ही क्यूं? हम सभी तो आपस में मौका मिलते ही किसी न किसी तरीके से भक्षण कर ही लेते हैं न?

कभी आँगन में पार्क की हुई कार के नीचे छुप जाती है.. उसी के ठीक सामने दरवाज़ा है.. उसकी जाली में से बाहर दिखाई देता है.. बिल्ली इसी के कारण निर्भय होकर दरवाजे के अन्दर से कुत्तों के सामने घूरती है, क्यूंकि उन्हें मालूम है कि ये कुत्ते उन्हें मार नहीं सकते.. इसलिए उनका रुतबा देखते ही बनता है !

उसी झूले पर झूलता रहता हूँ मैं और मन के अन्दर मेरा अतीत ! जो कभी कभी खुश कर देता या विचलित कर देता... एक विचार से ही दिनभर का Mood निश्चित हो जाता है... आज कैसे बीतेगा दिन ! जिनकी सुबह हँसती-खेलती हो वो पूरा दिन खुश रहेगा...

कईबार हम 'गुड मोर्निंग' तो कह देते हैं मगर वो औपचारिकता मात्र है, यह हम समझते हैं... कुछ लोग अपनी चतुराई से दुनियाभर की जानकारी मीठी बातें करते हुए जान लेते हैं... तब उनका भोलापन हमें भावुक बना देता है.. मगर वोही व्यक्ति जब अपनी असलियत दिखाने के लिए भोलापन का मोहरा उतार देता है तब उनकी आतंरिक विकृति कभी भी प्रकृति से मेल नहीं खाती... मगर उन्हें घमंड होता है अपनी पढाई और मानसशास्त्र के अभ्यास पर ! ऐसे लोग वास्तविक भोले मानुष को छल सकते हैं मगर एक दिन उन्हें भरपूर पछताना पड़ता है...

इंसान कोई बूरा नहीं होता, उनकी परिस्थिति और समय उन्हें मजबूर कर देता है और हम सिर्फ उन्हें ही देखकर तय कर लेते हैं कि यह इंसान ठीक नहीं ! इससे बड़ा अन्याय क्या होगा ?

आग अगर हवा को ही दोष देने लगें तो क्या होगा? हवा काम है बहना... और आग का काम है किसी को जलाना... दोनों में प्रकृति है मगर दोनों में संयम न हो तो कितनी बरबादी होती है... इसी का दुःख किसी एक व्यक्ति का नहीं होता, दोनों का होता है.. काश हम ऐसा समझ पातें तो ज़िंदगी की खुशियाँ हमें भी झूलाती...
मेरा झूला मुझे अहसास कराता है अपनी माँ की गोद का... बच्चा जब बड़ा हो जाता है, माँ नहीं रहती और मन विचलित होता है तब... यही अतीत आँखों को नम कर देता है... फिर भी ज़िंदगी का हर पल कितना कुछ नया सीखता है हमें !

  Mobile : 096625-14007

1 comment:

  1. इसे निबन्ध नहीं भावना प्रधान एक शब्द चित्र कहिये | अत्यंत सुंदर भावपूर्ण लेखन आदरणीय पंकज जी |

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