Sunday, December 30, 2018

‘ईंगुरी सूरज’ : श्रद्धा ‘सुमन’ की न केवल कविताएँ, कलाकृति भी ! - पंकज त्रिवेदी

कविताएँ कहने से नहीं लिखी जाती। जिनके हाथ में तुलिका हो, उनकी कल्पना का आकार अपने आप बनते जाता है। मित्र श्रद्धा ‘सुमन’ ने अपनी पद्य रचनाओं की किताब – ‘ईंगुरी सूरज’ में जो कुछ भी संजोया है वो सिर्फ कविताएँ नहीं है बल्कि उनके मस्तिष्क में आते वो सारे विचार चित्र है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ उन्हों ने तुलिका के स्थान पर कलम के माध्यम का उपयोग किया है।

विचार और कल्पना का मिलाझुला रूप ही सृजनात्मक दृष्टि देता है और यही हुआ श्रद्धा जी की कविताओं में, तल्खियों में और क्षणिकाओ में... जो एक पल के लिए आपको अपनी ओर खींच लेता है।
एक क्षणिका –

स्व अति सूक्ष्म है।
कैसा फिर विस्तार,
दो पग में इसे माप ले,
खुद को कर साकार।

निजत्व ही ‘स्व’ है और स्वकेंद्री भी है। इसलिए छोटा सा शब्द होते हुए उसका विस्तार कैसे यह बात कहकर पाठक को सजग बना दिया है। बाद में कहा कि दो पग में इसे माप ले, खुद को कर साकार... यही महत्त्वपूर्ण है। स्व-केंद्री बनकर भी आपको अपने अंदर ही विक्सित होना है और ‘स्व’ से ‘सर्व’ की यह यात्रा की ओर निर्देश किया है।

कैसे बनाऊँ एक कविता?
शब्दों को पिरोऊँ तो बिखरती है कविता
आँखों को भर लूं तो सिसकती है कविता

कविता महज़ शब्दों की अभिव्यक्ति नहीं है। जिस पल को महसूस करते हुए हम कुछ लिख दें वो कविता है। अर्थ यही कि जीवन का छोटा सा अंश ही कविता बनकर उभरता है। कविता बन भी सकती है और छल भी सकती है।

तल्खियाँ प्रभावित करती हैं।
चौबीस घंटे में मेरा कवित्व
कुछ ही क्षण मेरे पास आता है।
अब कहो
उसे सुनूँ या लिखूं?

सृजन के पल ही होते हैं जो हमारे अस्तित्व को भूलाकर कहीं नए रूप – रंग में ढाल देता है। नए विषय, विस्तार और कल्पना में ले जाता है जहाँ हम हमारे ही वश में नहीं रहते। शायद यही तो प्रकृति से परम का अनुभव हमें महसूस कराती है। ऐसे में हम उसे सुनें या लिखें?

सामाजिक विसंगति और अनुभवों से गुज़रती ये तल्खी –
इस मंदी में खरीदनी है
दो गज जमीनश्मशान में
डर है, कहीं वहाँ भी इमारतें न बन जाय ।

भौतिकता और आबादी के विस्तार के कारण इमारतों का जंगल उभरने लगा है और प्रकृति का विनाश होने लगा है। जंगल कट रहे हैं, खेत उजड़ने लगे हैं ऐसे में कवियत्री की दृष्टि और चिंता अंतिम विश्रामघाट की ओर खींच लेते है हमें भी... मार्मिक रचना है यह ! श्रद्धा रावल ‘सुमन’ को मेरी अनगिनत शुभकामनाएं ।
* * *
संपर्क : राघव रावल, 404, राधेकृष्ण एपार्टमेन्ट, वॉकहार्ट हॉस्पिटल के सामने, कालावाड़ रोड, राजकोट - गुजरात 


 

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