मैं ऐसा ही हूँ !
मेरे बारे में आप ज्यादा न सोचें
मैं सिर्फ आपसे ही नहीं, कभी-कभी
अपनेआप से भी दूर चला जाता हूँ !
अपनी ऑरा को अलग कर देखता हूँ !
सोचता भी नहीं कि
ऐसा क्यूँ होता है मेरे साथ ये सवाल
ठीक नहीं, आपके साथ भी होता होगा
हो सकता है आपके साथ नहीं भी !
यह जो सारी प्रक्रिया है वो प्रवाहिता है
अपने जीवन का छोटा सा हिस्सा है
मैं सहजता में जी सकता हूँ, उसीका आश्चर्य है
फिर भी खुशी से चलता रहता हूँ !
अपेक्षाओं का आवागमन नहीं है
उस पर ज़बरदस्ती कभी नहीं करता
मैं उपेक्षा तो कभी भी नहीं करता मगर
अपेक्षाओं को चुपचाप देखता हूँ !
आकलन करता हूँ खुद का
ऐसा क्या रह गया जो मुझे चाहिए
प्रत्युत्तर नहीं मिलता, न आपसे,
न किसीसे, न खुद से और न खुदा से !
ऐसा भी नहीं कि जीवन से उब गया हूँ
मुस्कुराता, ठहाके लगाता हूँ, लोगों से मिलता हूँ
क्षणिक गुस्सा, फिर शांत या बह जाता हूँ
अपनेआप से कुछ चुराता नहीं हूँ !
आयने में खुद को देख लेता हूँ
खुद पर शर्म नहीं आती न घीन आती है
कुछ कचोटता भी नहीं है खुद को देखकर
सुकून सा महसूस करता हूँ !
पूजा करता नहीं हूँ, भगवान की या इंसान की
अच्छे कार्य में भगवान होते हैं, उसे मिलता हूँ
किसीकी मुस्कराहट मिलती है तो लगता है
जैसे आशीर्वाद मिल गया है मुझे !
सच में, मैं ऐसा ही हूँ !
*
पंकज त्रिवेदी
28 जून 2019
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30 -06-2019) को "पीड़ा का अर्थशास्त्र" (चर्चा अंक- 3382) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
सार्थक सहज स्तुति ।
ReplyDeleteसही कहा
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