Wednesday, November 21, 2018
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गज़लाष्टमी - सॉलिड महेता (गुजराती ग़ज़ल संग्रह)
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सियासती दांवपेंच में आवाम खो जाती है बंद कमरों में चीखें भी कभी सो जाती है अखबार भी कितने मजबूर हो गए है ख़बर कुचल...
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बहुत पहले पढ़े थे फिनिक्स के बारे में,
ReplyDeleteशब्द प्रयोग आकर्षित कर रहा है सर
जीवन के संघर्ष को इंगित करती सारगर्भित पंक्तियाँ लिखी है आपने..बहुत अच्छी👌
श्वेता सिन्हा जी, ये पंछी अपनेआप में राख से उठकर खड़ा होता है. धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही सही सोच जीवन कोनसे ही जीना है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteफिर भी जीत साहस और स्वाभिमान की होती है | सार्थक पंक्तियाँ आदरणीय पंकज जी |
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