तुम जिसे अनुशासित कहते हो
मैं उस अनुशासन में जी नहीं सकता
क्योंकि मैं इन्सान हूँ और वो हमेशा
अनुशासन में जी नहीं सकता
मैं उस अनुशासन में जी नहीं सकता
क्योंकि मैं इन्सान हूँ और वो हमेशा
अनुशासन में जी नहीं सकता
तुम मुझे प्यार नहीं करते
मुझ पर अंकुश रखते हो शायद
और मैं निरंकुश हूँ इसलिए
इंसानियत को चाहता हूँ
पेड़-पौधों और जानवरों को भी
चाहता हूँ, क्योंकि वो मुझसे
अनुशासन की अपेक्षा नहीं रखते और
न मुझ पर अंकुश के डोरे डालते है
प्यार करना वैसे तो इस समाज में
अनुशासन को तोड़ना ही है !
इसलिए मैं कहीं भी किसी के बंधन में
उनके अधिकार क्षेत्र में महसूस करता हूँ
वो है सिर्फ - घुटन !!!
*
- पंकज त्रिवेदी
अद्भुत सोच..😢
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteप्रेम उन्मुक्त हो तो खुल कर साँस लेता है और भरपूर पनपता है | बंधन प्रेम को स्वीकार्य नहीं | बहुत ही अद्भुत बात लिखी आपने आदरणीय पंकज जी | उन्मुक्त प्रेम लौटकर प्रेम के पास ही आता है | यही सच है | बंदिशों की घुटन में इसका अस्तित्व दाव पर लग जाता है | सादर है |
ReplyDelete