मेरे अंदर एक झील है जैसे
यादों की झील जो मेरे लिए
संजीवनी बनकर हमेशा मुझे
प्रेरित करती रहती है और
अपने निर्मल जल से हर बार
पवित्र रखती है तुम्हारे लिए
इसी झील के किनारे होती थी
तुम्हीं से प्यार की कुछ बातें और
निभाते थे प्यार की नोंकझोंक भी
तुम्हारे मेरे बीच न जाने कितना कुछ
बदलता रहा था अंदर-बाहर से
आँखों के जंगल ने हमारी ज़िंदगी के
न जाने कितने पलों को नोंच लिया था
और भीड़ से बारीबारी उभरकर आते थे
वो लोग उन्हीं में से हमारे कंधे पर
हाथ रखकर कहते, हम है तुम्हारे साथ
तुम जानती हो कि कौन साथ होता है
मगर हम इस 'कौन' के चेहरे को कभी
परख न सकें और न समझ पाएं कि
किसपे भरोसा करें हम और टूटते रहे
बिखरने लगा हमारा आभामंडल और
वो इंतज़ार करते रहे जबतक हम न
बिछड जाएँ... उनका सपना सही हुआ
आज मैं हूँ, झील है और किनारा भी
वो यादें है, वो बातें है और तुम्हारा वो
निर्मल जल सा अस्तित्व चमकता है
मेरे प्यार के सूरज की किरणों से और
मैं चकाचौंध होकर आँखें मूँद लिए
बैठा रहता हूँ दिन-रात झील के किनारे
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बहुत सुंदर रचना.... ,सादर नमन
ReplyDeleteअत्यंत सरल और दिल को छू लेने वाली रचना
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