Wednesday, November 21, 2018

अलसुबह














अलसुबह
मैं फिनिक्स बनकर
उठ खड़ा होता हूँ
अपने अस्तित्व को
निखारने के लिए !


दिनभर जद्दोजहद में
लगे रहते हैं मेरे ही
चाहने वाले मुझे
गिराने के लिए !

***

5 comments:

  1. बहुत पहले पढ़े थे फिनिक्स के बारे में,
    शब्द प्रयोग आकर्षित कर रहा है सर

    जीवन के संघर्ष को इंगित करती सारगर्भित पंक्तियाँ लिखी है आपने..बहुत अच्छी👌

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  2. श्वेता सिन्हा जी, ये पंछी अपनेआप में राख से उठकर खड़ा होता है. धन्यवाद

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  3. बहुत ही सही सोच जीवन कोनसे ही जीना है

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  4. फिर भी जीत साहस और स्वाभिमान की होती है | सार्थक पंक्तियाँ आदरणीय पंकज जी |

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