Monday, December 3, 2018

आज प्रधानमंत्री आएं












आज प्रधानमंत्री आएं
हेलिकोप्टर से तीन चक्कर लगाएं
छोटे से शहर के ऊपर से
देखते रहे कि -'विकास' कहाँ है?
और लोग अपने घर की छतों पर
देखते रहे आशाभरी नज़रों से !

नदी में पिछली बारिश में
बाढ़ से टूटे हुए दो पुल बिखरे हुए हैं
परेशान लोग आज पुलिस के बंदोबस्त से
और पहले सडकों से थे, अब गालियाँ देते

वाहनों के पीछे उड़ती धुल में
चेहरे बदल जाते हैं ऐसा किसीने बोला
और मैंने चुपचाप सुन लिया !

कहीं मंदिर, जातिवाद और गुटबाजी के खेल
भाषा की असंयमित अभिव्यक्ति में फँसते
नेताओं के लिए रेस्क्यू ओपरेशन होते रहते हैं
दूसरे मुद्दे को मशीनों से उठाकर
जनता पर लाद दिया जाता है विकास के नाम का बोज !

किसी पर जातिवाद का आरोप है तो
कहीं एक ही जाति के दो उम्मीदवारों को
आमने-सामने रखकर लड़ाया जाता है और
बातें एकता की होती हैं !

असल में कौन लड़ता है? उम्मीदवार या पीड़ित जनता
जो अपने नेताओं को समर्पित होकर, बड़ी आशा के साथ
अपने अमूल्य मत को लेकर पाँच वर्ष की सुखाकरी का
सपना देखता है और पछताने के अलावा कुछ नहीं पाता है

हेलिकोप्टर ने छोटे से शहर पर चक्कर लगाएं
शहर के लोग पलभर बच्चे बनकर हेलिकोप्टर को देखते रहें
उनकी बातों को मासूम बच्चे की तरह सुनते रहें
उनके गुणगान में नारे लगाते रहे....

तब उसी सभास्थल से कुछ दूरी पर कोई चायवाला
अपने हाथों को जल्दी चलाते हुए भट्ठी की
आग को तेज़ करता हुआ खुश हो रहा था...
शायद आज उनके चाय के ठेले को हटाने के लिए
प्रशासन ने जबरज़स्ती नहीं की थी !
*
पंकज त्रिवेदी

1 comment:

  1. आदरणीय पंकज जी -- राजनैतिक तमाशों को साकार करती सार्थक रचना के लिए हार्दिक आभार और बधाई | भोले- भाले लोग लोग तो प्रधानमंत्री के जहाज को देखकर ही विस्मय से भर जाते हैं पर इन तमाशों से भूखों का पेट तो नहीं भरता !!राजनीती में जो ना हो वो थोड़ा है | सादर --

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