Saturday, January 5, 2019

कांग्रेस को कोसने वाले कटघरे में खड़े हो जाएंगे

05 जनवरी 2019 : अखंड राष्ट्र (दैनिक)
लखनऊ और मुंबई -मेरा स्तम्भ - प्रत्यंचा
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कांग्रेस को कोसने वाले कटघरे में खड़े हो जाएंगे - पंकज त्रिवेदी
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विश्व की चर्चित कहानियां नामक पुस्तक में विश्व की विविध भाषाओं का हिन्दी अनुवाद श्री सुशांत सुप्रिय ने किया था। उनमें से एक कहानी, ‘दुख’ का एक अंश :

कोचवान योना मुड़कर अफ़सर की ओर देखता है। उसके होंठ ज़रा-से हिलते हैं। शायद वह कुछ कहना चाहता है।
‘क्या कहना चाहते हो तुम?’ अफ़सर उससे पूछता है।
योना जबरदस्ती अपने चेहरे पर एक मुस्कुराहट ले आता है और कोशिश करके फटी आवाज में कहता है, “मेरा इकलौता बेटा बारिन इस हफ्ते गुज़र गया साहब!”
“अच्छा, कैसे मर गया वह?”
योना अपनी सवारी की ओर पूरी तरह मुड़कर बोलता है, “क्या कहूं साहब, डॉक्टर तो कह रहे थे सिर्फ तेज़ बुखार था...”
“...जरा तेज़ चलाओ घोड़ा...और तेज़...” अफ़सर चीख़ा। “नहीं तो हम कल तक भी नहीं पहुंच पाएंगे! जरा और तेज़!” ...कोचवान बीच-बीच में कई बार पीछे मुड़कर अपनी सवारी की तरफ देखता है, लेकिन उस अफ़सर ने आंखें बंद कर ली हैं। साफ़ लग रहा है कि वह इस समय कुछ भी सुनना नहीं चाहता।
...कोचवान बेहद बेचैन होकर खड़ी भीड़ को देखता है, गोया कोई आदमी तलाश रहा हो, जो उसकी बात सुने। पर भीड़ उसकी मुसीबत की ओर ध्यान दिए बिना आगे बढ़ जाती है। उसका दुख असीम है...उसे कोई नहीं देखता।”

कुछ ऐसा ही है। कुछ लोगों को बाद करते हुए सभी भारतीय चाहता है कि अयोध्या में शीघ्र ही राममंदिर बने। 2014 में पूरे देश ने इसी मंशा के साथ भाजपा को पूर्ण बहुमत देकर सत्तर साल पुरानी कांग्रेस और अन्य दलों को हाशिये में धकेल दिया था। एक समय आ गया कि कांग्रेस अब कभी उभर नहीं पाएंगी। राममंदिर की आस में ही 2018 तक देश की जनता भाजपा पर पूर्ण विश्वास से भरी हुई थी। मोदी जी ने विश्व में भारत का नाम रोशन किया है और न जाने आगे क्या क्या करने वाले हैं। हर चोरेचौटे पे यही चर्चा थीं। भाजपा के खिलाफ एक भी शब्द सुनने को कोई तैयार न था। मगर जैसे जैसे लोकसभा चुनाव 2019 नज़रों के सामने आने लगा तब देश के साधु-संतों ने अपनी आवाज़ बुलंद कर दी। यहाँ तक कि राममंदिर के मुद्दे पर संघ ने भी दो टूक कह दिया कि राममंदिर पर शीघ्र ही ठोस कदम उठाने होंगे। साथ में विश्व हिन्दू परिषद् एवं देश की जनता का भी दबाव बढ़ने लगा।


पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह को मौनी बाबा कहने वाले मोदी जी खुद मौन हो गए और जब बोलते तब ‘मन की बात’ ही बोलते। अब देश की जनता को उनके मन की नहीं, अपने मन की बात सुनानी है। आखिरकार श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सवाल-जवाब तैयार करवाकर साक्षात्कार दिया तब देश के मीडिया ने और जनता ने उस साक्षात्कार में एक ही लाइन सुनना चाही थी, वो थी कि – हम अध्यादेश संसद में पारित करके राममंदिर शीघ्र ही बनाएंगे। मगर ऐसा न हो पाया और मोदी जी फिसड्डी हो गए। उन्हों ने साफ़ कह दिया कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है और अध्यादेश लाने का अभी कोई इरादा नहीं है। इसी बात पर देश में हर जगह और मीडिया में उसी मुद्दे पर चर्चा शुरू हो गई कि मोदी जी ने मेनिफेस्टो में राममंदिर का मुद्दा दिया था और लोग विश्वास जताते हुए इंतज़ार में थे। इस साक्षात्कार के साथ देश के साधु-संतो और जनता ने खुद को ठगा हुआ महसूस किया। अब सुप्रिम कोर्ट ने 10 जनवरी तक सुनवाई टाल दी है। अब इंतजार है कि कोर्ट राममंदिर के पक्ष में फेंसला सुनाती है या नहीं। अगर फेसला विपरीत आया तो मोदी जी का प्रधानमंत्री पद तो जाएगा ही, साथ ही भाजपा का नामोनिशान मिट जाएगा।

कांग्रेस को कोसने वाले कटघरे में खड़े हो जाएंगे और देश में राममंदिर के नाम अराजकता फ़ैल जाने का भी अंदेशा भी नकार नहीं सकते। वर्त्तमान स्थिति अनुसार राममंदिर के नाम चुनाव में वादे करने वाले मोदी ने देश की जनता को भावनात्मक रूप से ब्लेकमेल किया है। ऐसा लगता है कि मोदी जी राममंदिर के चक्रव्यूह में ऐसे फंस गए हैं, जैसे वो कांग्रेस को अपनी फेंकबाज़ी से चक्रव्यूह में लेकर बेकफूट पर धकेल आए थे। अब मोदी जी के सारे जुमले अब उनके गले की हड्डी बनकर चुभ रहे हैं। हमेशा घमंडी तौर और ऊंची आवाज़ में बात करने वाले मोदी जी साक्षात्कार के समय इतने विनम्र हो गए थे कि लगें यह मोदी जी ही नहीं हैं। झूठ का एक समय होता है, वो सत्य को प्रताड़ित कर सकता है मगर हरा नहीं सकता। मोदी जी का झूठ अब सर पे चढ़कर बोल रहा है। अब तो सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जो भी आएं, मगर अंतिम समय पर अध्यादेश को संसद में पारित नहीं कर पाएं तो मोदी जी तो चुपके से झोला लेकर चल पड़ेंगे। बाद में भाजपा के प्रवक्ताओं को नौकरी कौन देगा? देश इस जुमलेबाज़ी से थक चूका है। झूठे वादे और जनता को नोटबंदी तथा जीएसटी की मार का बदला लेना होगा। धनवानों की भाजपा सरकार को देश की जनता 2019 में ऐसा सबक सिखाएगी कि दुबारा चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं होगी। राजनीति का खेल निराला है, राहुल को बेशर्म कहने वाले लोग कुछ भी कर सकते हैं। 
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