Friday, January 4, 2019

तुम जब भी चाहो

तुम जब भी चाहो
छूकर महसूस करो
मेरे मन को, तन को

छूकर महसूस करना
चर्म स्पर्श का सुख है
वो मन से ज्यादा लिए है

छूकर महसूस करना
हमारी बुढी माँ के हाथों का
लचीला चर्म स्पर्श जब भी

हमारा मासूम सा बच्चा
जिज्ञासा-विस्मय मिश्रित
आँखों में प्रश्न ले आता है

तब महसूस होता है कि
हमारा पौत्र ऐसे ही महसूस
कर पाएगा हमारे चर्म को?

पीढ़ियाँ, रहन-सहन, संस्कार
सब बदल रहा है छत के नीचे
चर्म से नहीं सीखते हम कभी

समय के साथ लचीलेपन का
स्वीकार करना और ढूँढते हैं
कमियाँ जो नहीं सह पातें हम !

***

4 comments:

  1. बिल्कुल सही
    बेहतरीन रचना आदरणीय।

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  2. बेहतरीन रचना आदरणीय

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  3. श्री रवीन्द्र जी, आपका आभारी हूँ

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  4. सम्माननीय अभिलाषा जी, धन्यवाद

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