तुम जब भी चाहो
छूकर महसूस करो
मेरे मन को, तन को
छूकर महसूस करना
चर्म स्पर्श का सुख है
वो मन से ज्यादा लिए है
छूकर महसूस करना
हमारी बुढी माँ के हाथों का
लचीला चर्म स्पर्श जब भी
हमारा मासूम सा बच्चा
जिज्ञासा-विस्मय मिश्रित
आँखों में प्रश्न ले आता है
तब महसूस होता है कि
हमारा पौत्र ऐसे ही महसूस
कर पाएगा हमारे चर्म को?
पीढ़ियाँ, रहन-सहन, संस्कार
सब बदल रहा है छत के नीचे
चर्म से नहीं सीखते हम कभी
समय के साथ लचीलेपन का
स्वीकार करना और ढूँढते हैं
कमियाँ जो नहीं सह पातें हम !
***
छूकर महसूस करो
मेरे मन को, तन को
छूकर महसूस करना
चर्म स्पर्श का सुख है
वो मन से ज्यादा लिए है
छूकर महसूस करना
हमारी बुढी माँ के हाथों का
लचीला चर्म स्पर्श जब भी
हमारा मासूम सा बच्चा
जिज्ञासा-विस्मय मिश्रित
आँखों में प्रश्न ले आता है
तब महसूस होता है कि
हमारा पौत्र ऐसे ही महसूस
कर पाएगा हमारे चर्म को?
पीढ़ियाँ, रहन-सहन, संस्कार
सब बदल रहा है छत के नीचे
चर्म से नहीं सीखते हम कभी
समय के साथ लचीलेपन का
स्वीकार करना और ढूँढते हैं
कमियाँ जो नहीं सह पातें हम !
***
बिल्कुल सही
ReplyDeleteबेहतरीन रचना आदरणीय।
बेहतरीन रचना आदरणीय
ReplyDeleteश्री रवीन्द्र जी, आपका आभारी हूँ
ReplyDeleteसम्माननीय अभिलाषा जी, धन्यवाद
ReplyDelete