मैं खुद को इस कदर जगाता रहा
जैसे मुझ में ही कोई सोया रहा !
मुद्दतों से खंगालता रहा मैं खुद में
प्यार है या परदे में खुदा है वो मेरा
हर शाम सुहानी हो जरूरी तो नहीं
हर शाम के बहाने तुम्हें ढूँढता रहा
देखूं तो कोई दस्तक दे रहा है आकर
मासूम बच्चा माँ की गोद में जो रहा
माँग लेने दो आज माँगे वो सब तेरा
न जाने किस भेष में आता-जाता रहा
*
।। पंकज त्रिवेदी ।।
बेहतरीन 👌
ReplyDelete