Wednesday, November 14, 2018

तुम्हारी आँखें

तुम्हारी आँखें
बहुत कुछ कह देती है
तुम्हें बोलने की ज़रूरत
महसूस ही नहीं होती है

तुम्हारी आँखें
मुझे इस कदर देखती है
जैसे तुम मुझमें उतर जाती हो
मेरे दिल की धड़कन सुनती
मेरी रूह की आवाज़ और
अनकही बातें समझ लेती हो

तुम्हारी आँखें
वो माध्यम है जिसके ज़रिये
तुम मेरे पूरे व्यक्तित्त्व को
खंगाल लेती हो और तो और
मज़ेदार बात यह है कि
तुम्हारी चुप्पी महसूस करता
तुम्हारी आँखों से ये मैं जान लेता हूँ

तुम्हारी आँखें
बड़ी तेज़ है, जिससे कभी तेरे
प्यार की नमीं उभरती है तो कभी
मेरे उतावलेपन को रोकने के लिए
ये आँखें इशारा कर रोक लेती है
तुम मुझे ऐसे ही देखती रहो और
मैं तुम्हें देखकर ऐसी ज़िंदगी जी लूं
जिस पे तुम्हें गर्व महसूस हो !
*

2 comments:

  1. आखों से कितनी उम्मीदे लिए मन की ये रचना बहुत ही सुंदर और ह्रदय स्पर्शी है आदरणीय पंकज जी |आँखें मन का दर्पण होती हैं पर उसकी भाषा पढने के लिए एक कवि मन होना जरूरी है | भावपूर्ण लेखन के लिए हार्दिक बधाई आपको |

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    1. रेणु जी, ये आँखें तो है जो इंसान के मन को भांप लेता है... धन्यवाद इस प्रोत्साहन के लिए

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