Thursday, November 15, 2018

चंद पंक्तियाँ

 
गज़ब का प्यार हो तो इंतज़ार का मज़ा भी हो
कितना दर्द देती है फिर भी मीठा मीठा सा हो
*

मैं खुद से ही खो गया था जैसे मेरा वजूद ही नहीं
ये कैसी परछाईं पल रही है मेरे अंदर सबूत ही नहीं
*

शायराना अंदाज़े बयाँ तो तुम्हारी कदरदानी है
कैसे कुछ लिखता मैं यह तुम्हारी मेहरबानी है
*
पंकज त्रिवेदी

4 comments:

  1. अनुराग पगी पंक्तियाँ अद्भुत हैं आदरणीय पंकज जी | सादर आभार |

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  2. वाहहह क्या कहने...बेहद लाज़वाब रचना सर..👌

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    1. श्वेता जी, आपका प्रोत्साहन संबल है

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