तेरे दीदार को तरसना बंद कर दिया है हमने
लोग प्यार कर ढूँढें बाहर तुम दिल में हो मेरे
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मैं हर एक महफ़िल में मौजूद रहता था
लगता तुम्हीं से कहीं तो मुझे मिलना था
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बात दिल में दबाओं या होठों के बीच कहीं
ये जो तेरी आँखें है कुछ कह न दें मुझे कहीं
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तुम्हारी आँखों में समाया हुआ है ये मयखाना
बहकाने के हर अंदाज़ हो तुम और मयखाना
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|| पंकज त्रिवेदी ||
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बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना है आदरणीय पंकज जी |रोमानियत से भरपूर | सादर
ReplyDeleteरेणु जी, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteअमित जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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