ये कैसे पल हैं? जो एक पल में सुकून दें और एक पल में ज़ख्म दें.
पलट जाती हैं कभी भी सिक्के की तरह, ज़िंदगी भी कैसे रंग बदलती है...
कभी तुझमें खोजती है मुझे और कभी मुझमें खो जाते हैं ये अपने ही रिश्ते.
हर दिन कोई नया जुड़ जाता है जन्म लेकर और कोई छूट जाता हैं सालों का साथ निभाते हुए...
खड़ा हूँ मैं इंतज़ार में.... असंजस की धुन्द ओढ़े हुए...
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पंकज त्रिवेदी
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