Monday, February 4, 2019

कैसे ख़त्म हो पाएगा...?










इंतज़ार भी अब मानों ख़त्म हो गया है
ऐसा मन को मनाने में बरसों बीते
चलो, अच्छा हुआ, अब मान भी लिया

आँखें कमज़ोर,
याददास्त भी आती-जाती
काँपते हाथ में छडी का सहारा

चेहरे की चमक पे झुर्रियाँ
सिर्फ यादों के सहारे बीतते दिन
इंतज़ार ख़त्म हो गया है, कह दिया

इंतज़ार इंसान के जीवन में
ख़त्म नहीं होता कभी भी
पल पल बड़ा होता जाता है

प्यार की गहराई में डूबता हुआ इंसान
चाहें कितना भी कोशिश कर लें
इंतज़ार जब होता है अपनों का

कैसे ख़त्म हो पाएगा...?
*
पंकज त्रिवेदी

3 comments:

  1. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति.. वाह्ह्ह सर लाज़वाब👍👌👌

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  2. सच में इंतजार कब ख़त्म होता है... बहुत भावपूर्ण रचना...

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