Sunday, February 10, 2019

मन के भीतर - पंकज त्रिवेदी
















तुझसे न मिलने की कसम यूँ खाकर भी 
राह के हर पत्थर से पता पूछते रहें हम

पत्थरों की बस्ती में जीने की आदत अब 
सख्त तन में प्यार का झरना बहातें हम 

ठोकरों का सिलसिला चलता भी रहा तो 
गिरकर संभलते और राह चलते रहें हम

मैं अकेला हो गया हूँ तो भी क्या हुआ अब 
मन के भीतर कारवाँ बहता लेकर चले हम 

*

2 comments:

  1. क्या बात है..!👌👌👌

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  2. पत्थरों की बस्ती में जीने की आदत अब
    सख्त तन में प्यार का झरना बहातें हम
    बहुत खूब आदरणीय पंकज जी
    \ सभी शेर शानदार हैं आपके अपने अंदाज में | सादर

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