Monday, April 29, 2019

बस यूँही चलते चलते












शाम ढल रही है दोस्त ! 
आओ चलें मंज़िल की ओर

दिनभर का सफ़र मजेदार रहा 
तुम्हारा साथ भी शानदार रहा


इसीका नाम जीवन है दोस्त ! 
वर्ना कौन किसीके साथ चलता

संबधों की आड़ में बहुत लोग मिले 
शायद ही एक दोस्त वफादार रहा 
*
पंकज त्रिवेदी
*

1 comment:

  1. संबधों की आड़ में बहुत लोग मिले
    शायद ही एक दोस्त वफादार रहा
    बहुत ही अनमोल सच छिपा है रचना में आदरणीय पंकज जी | सादर

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