Wednesday, November 21, 2018

शायद यही प्यार है


















इतना भी प्यार मत करो
हम पल पल खुद से बिछड़ जाएं
इतना भी साथ न निभाओ
हम पल पल खुद के लिए भी न जिएं
इतना भी न कहो हमें कुछ
हम कुछ भी समझ ही न पाएं 

क्योंकि -
मैं अहसास को पाता हूँ और
मौन की भाषा समझता हूँ
प्रकृति के साथ रहता हूँ
और वहाँ शोर नहीं होता
मन की शांति होती है वहाँ और
प्रसन्नता होती है
शायद यही प्यार है !
*
- पंकज त्रिवेदी

7 comments:

  1. अनकहा सब समझ सके ऐसा मन भी होना चाहिए,
    भाव शब्दों से कब एहसास किये जा सके है।
    सुंदर रचना सर।

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  2. श्वेता सिन्हा जी, आपने सही कहा. धन्यवाद

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  3. बहुत बढ़िया -- आदरणीय पंकज जी | प्रकृति का सानिध्य और प्रेम के लिए मौन !!! शायद प्रेम में मौन से बेहतर कोई अभिव्यक्ति नहीं | सादर --

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