इतना भी प्यार मत करो
हम पल पल खुद से बिछड़ जाएं
इतना भी साथ न निभाओ
हम पल पल खुद के लिए भी न जिएं
इतना भी न कहो हमें कुछ
हम कुछ भी समझ ही न पाएं
हम पल पल खुद से बिछड़ जाएं
इतना भी साथ न निभाओ
हम पल पल खुद के लिए भी न जिएं
इतना भी न कहो हमें कुछ
हम कुछ भी समझ ही न पाएं
क्योंकि -
मैं अहसास को पाता हूँ और
मौन की भाषा समझता हूँ
प्रकृति के साथ रहता हूँ
और वहाँ शोर नहीं होता
मन की शांति होती है वहाँ और
प्रसन्नता होती है
शायद यही प्यार है !
*
- पंकज त्रिवेदी
अनकहा सब समझ सके ऐसा मन भी होना चाहिए,
ReplyDeleteभाव शब्दों से कब एहसास किये जा सके है।
सुंदर रचना सर।
श्वेता सिन्हा जी, आपने सही कहा. धन्यवाद
ReplyDeleteअनमोल
ReplyDeleteअनमोल
ReplyDeleteअनमोल अहसास
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत बढ़िया -- आदरणीय पंकज जी | प्रकृति का सानिध्य और प्रेम के लिए मौन !!! शायद प्रेम में मौन से बेहतर कोई अभिव्यक्ति नहीं | सादर --
ReplyDelete